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के ते॑ अग्ने रि॒पवे॒ बन्ध॑नासः॒ के पा॒यवः॑ सनिषन्त द्यु॒मन्तः॑। के धा॒सिम॑ग्ने॒ अनृ॑तस्य पान्ति॒ क आस॑तो॒ वच॑सः सन्ति गो॒पाः ॥४॥

English Transliteration

ke te agne ripave bandhanāsaḥ ke pāyavaḥ saniṣanta dyumantaḥ | ke dhāsim agne anṛtasya pānti ka āsato vacasaḥ santi gopāḥ ||

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Pad Path

के। ते॒। अ॒ग्ने॒। रि॒पवे॑। बन्ध॑नासः। के। पा॒यवः॑। स॒नि॒ष॒न्त॒। द्यु॒ऽमन्तः॑। के। धा॒सिम्। अ॒ग्ने॒। अनृ॑तस्य। पा॒न्ति॒। के। अस॑तः। वच॑सः। स॒न्ति॒। गो॒पाः ॥४॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:12» Mantra:4 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) राजन् ! (ते) आपके (रिपवे) शत्रु के लिये (के) कौन (बन्धनासः) बन्धक और (के) कौन आपके राज्य के (पायवः) पालन करनेवाले (के) कौन (द्युमन्तः) कामना करनेवाले वा प्रकाशयुक्त (सनिषन्त) विभाग करते हैं, और हे (अग्ने) विद्या और विनय के प्रकाशक कौन (धासिम्) अन्न की (पान्ति) रक्षा करते हैं (के) कौन (अनृतस्य) असत्य व्यवहार के (आसतः) निन्द्य (वचसः) वचन से (गोपाः) रक्षा करनेवाले (सन्ति) हैं ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् ! राजन् ! आप को चाहिये कि इस प्रकार का कर्म्म करें, जिससे शत्रुओं का नाश, प्रजा का पालन होवे, यह इस का उत्तर है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! ते रिपवे के बन्धनासः के ते राज्यस्य पायवः के द्युमन्तः सनिषन्त। हे अग्ने ! के धासिं पान्ति केऽनृतस्यासतो वचसो गोपाः सन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (के) (ते) तव (अग्ने) राजन् (रिपवे) (बन्धनासः) बन्धकाः (के) (पायवः) पालकाः (सनिषन्त) विभजन्ते (द्युमन्तः) कामयमानाः प्रकाशवन्तो वा (के) (धासिम्) अन्नम् (अग्ने) विद्याविनयप्रकाशक (अनृतस्य) असत्यव्यवहारस्य (पान्ति) रक्षन्ति (के) (असतः) निन्द्यात् (वचसः) वचनात् (सन्ति) (गोपाः) ॥४॥
Connotation: - हे विद्वन् राजन् ! त्वयैवं कर्मानुष्ठेयं येन रिपूणां विनाशः प्रजापालनं सम्भवेदस्योत्तरम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वान राजा ! तू या प्रकारचे काम कर की ज्यामुळे शत्रूंचा नाश व प्रजेचे पालन व्हावे. ॥ ४ ॥