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त्वाम॑ग्ने॒ अङ्गि॑रसो॒ गुहा॑ हि॒तमन्व॑विन्दञ्छिश्रिया॒णं वने॑वने। य जा॑यसे म॒थ्यमा॑नः॒ सहो॑ म॒हत्त्वामा॑हुः॒ सह॑सस्पु॒त्रम॑ङ्गिरः ॥६॥

English Transliteration

tvām agne aṅgiraso guhā hitam anv avindañ chiśriyāṇaṁ vane-vane | sa jāyase mathyamānaḥ saho mahat tvām āhuḥ sahasas putram aṅgiraḥ ||

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Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। अङ्गि॑रसः। गुहा॑। हि॒तम्। अनु॑। अ॒वि॒न्द॒न्। शि॒श्रि॒या॒णम्। वने॑ऽवने। सः। जा॒य॒से॒। म॒थ्यमा॑नः। सहः॑। म॒हत्। त्वाम्। आ॒हुः॒। सह॑सः। पु॒त्रम्। अ॒ङ्गि॒रः॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:11» Mantra:6 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:6 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्या की इच्छा करनेवाले ! जैसे (अङ्गिरसः) प्राणों के सदृश विद्याओं में व्याप्त जन (वनेवने) जङ्गल-जङ्गल में अग्नि के सदृश जीव-जीव में (शिश्रियाणम्) व्याप्त (गुहा) बुद्धि में (हितम्) स्थित परमात्मा को (अनु, अविन्दन्) प्राप्त होते हैं और जिन (त्वाम्) आप को प्राप्त कराते हैं, वैसे (सः) वह आप (मथ्यमानः) मथे गये विद्वान् (जायसे) होते हो और जिससे (सहसः) विद्या और शरीर के बल से युक्त के (पुत्रम्) पुत्र और (सहः) बल (महत्) बड़े को प्राप्त (त्वाम्) आप को (अङ्गिरः) प्राण के सदृश प्रिय विद्वान् जन (आहुः) कहें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे योगी जन संयम अर्थात् इन्द्रियों को अन्य विषयों से रोकने से परमात्मा को प्राप्त होकर नित्य आनन्दित होते हैं, वैसे इसको प्राप्त होकर आप लोग आनन्दित हूजिये ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ग्यारहवाँ सूक्त और तृतीय वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यथाङ्गिरसो वनेवने शिश्रियाणं गुहा हितमन्वविन्दन् यं त्वां प्रापयन्ति तथा स त्वं मथ्यमानो विद्वाञ्जायसे येन सहसस्पुत्रं सहो महत्प्राप्तं त्वामङ्गिरः विद्वांस आहुः ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) (अग्ने) विद्यां जिघृक्षो (अङ्गिरसः) प्राणा इव विद्यासु व्याप्ता जनाः (गुहा) बुद्धौ (हितम्) स्थितं परमात्मानम् (अनु) (अविन्दन्) अनुलभन्ते (शिश्रियाणम्) व्याप्तम् (वनेवने) जङ्गलेजङ्गलेऽग्नाविव जीवेजीवे (सः) (जायसे) (मथ्यमानः) विलोड्यमानः (सहः) बलम् (महत्) (त्वाम्) (आहुः) कथयेयुः (सहसः) विद्याशरीरबलयुक्तस्य (पुत्रम्) (अङ्गिरः) प्राण इव प्रियः ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा योगिनः संयमेन परमात्मानं प्राप्य नित्यं मोदन्ते तथैतं प्राप्य यूयमप्यानन्दतेति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकादशं सूक्तं तृतीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे योगी संयमाने परमेश्वराला प्राप्त करून सदैव आनंदात राहतात तसे तुम्ही त्याला प्राप्त करून आनंदात राहा. ॥ ६ ॥