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असं॑मृष्टो जायसे मा॒त्रोः शुचि॑र्म॒न्द्रः क॒विरुद॑तिष्ठो वि॒वस्व॑तः। घृ॒तेन॑ त्वावर्धयन्नग्न आहुत धू॒मस्ते॑ के॒तुर॑भवद्दि॒वि श्रि॒तः ॥३॥

English Transliteration

asammṛṣṭo jāyase mātroḥ śucir mandraḥ kavir ud atiṣṭho vivasvataḥ | ghṛtena tvāvardhayann agna āhuta dhūmas te ketur abhavad divi śritaḥ ||

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Pad Path

असं॑ऽमृष्टः। जा॒य॒से॒। मा॒त्रोः। शुचिः॑। म॒न्द्रः। क॒विः। उत्। अ॒ति॒ष्ठः॒। वि॒वस्व॑तः। घृ॒तेन॑। त्वा॒। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। अ॒ग्ने॒। आ॒ऽहु॒त॒। धू॒मः। ते॒। के॒तुः। अ॒भ॒व॒त्। दि॒वि। श्रि॒तः ॥३॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:11» Mantra:3 | Ashtak:4» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:5» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (आहुत) सत्कार से निमन्त्रित (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान विद्यार्थी ! जो विद्वान् जन (विवस्वतः) सूर्य्य से (घृतेन) विद्या के प्रकाश से (त्वा) आपकी (अवर्धयन्) वृद्धि करें और जिन (ते) आपकी अग्नि के (धूमः) धूम के सदृश (दिवि) प्रकाशमान मनोहर और सत्कार करने योग्य परमेश्वर में (केतुः) जनानेवाले के सदृश बुद्धि (श्रितः) सेवन किई =की गयी (अभवत्) होती है तथा (मात्रोः) माता के सदृश आदर करनेवाले विद्या और आचार्य्य की शिक्षा को प्राप्त होकर (असंमृष्टः) अच्छे प्रकार अशुद्ध आप (मन्द्रः) प्रशंसित और आनन्दित (शुचिः) पवित्र (जायसे) होते हो और (कविः) विद्वान् (उत्, अतिष्ठः) उठता है, उनका हम लोग सत्कार करें ॥३॥
Connotation: - जो बालक वा कन्या विद्वानों वा पढ़ी हुई स्त्रियों से ब्रह्मचर्य्यपूर्वक विद्या को प्राप्त होकर पवित्र होते, वे संसार को शोभित करनेवाले होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे आहुताग्ने विद्यार्थिन् ! ये विद्वांसो विवस्वतो घृतेन त्वावर्धयन् यस्य तेऽग्नेर्धूम इव दिवि केतुः श्रितोऽभवन्मात्रोः शिक्षां प्राप्याऽसंमृष्टस्त्वं मन्द्रः शुचिर्जायसे कविरुदतिष्ठस्तं वयं सत्कुर्याम ॥३॥

Word-Meaning: - (असंमृष्टः) सम्यगशुद्धः (जायसे) उत्पद्यसे (मात्रोः) मातृवन्मान्यकारकयोर्विद्याचार्ययोः (शुचिः) (मन्द्रः) प्रशंसित आनन्दितः (कविः) विद्वान् (उत्) (अतिष्ठः) उत्तिष्ठते (विवस्वतः) सूर्यात् (घृतेन) विद्याप्रकाशेन (त्वा) त्वाम् (अवर्धयन्) वर्धयन्तु (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (आहुत) सत्कारेण निमन्त्रित (धूमः) (ते) तव (केतुः) प्रज्ञापक इव प्रज्ञा (अभवत्) भवति (दिवि) प्रकाशमाने कमनीये सत्कर्त्तव्ये परमेश्वरे (श्रितः) सेवितः ॥३॥
Connotation: - यो बालकः कन्या वा विद्वद्भ्यो विदुषीभ्यो वा ब्रह्मचर्य्येण विद्यां प्राप्य पवित्रौ जायेते तौ जगतो भूषकौ भवतः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे बालक व बालिका विद्वान किंवा विदूषीकडून ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या प्राप्त करून पवित्र बनतात ते जगाला भूषणावह ठरतात. ॥ ३ ॥