अग्ने॑ मृ॒ळ म॒हाँ अ॑सि॒ य ई॒मा दे॑व॒युं जन॑म्। इ॒येथ॑ ब॒र्हिरा॒सद॑म् ॥१॥
agne mṛḻa mahām̐ asi ya īm ā devayuṁ janam | iyetha barhir āsadam ||
अग्ने॑। मृ॒ळ। म॒हान्। अ॒सि॒। यः। ई॒म्। आ। दे॒व॒ऽयुम्। जन॑म्। इ॒येथ॑। ब॒र्हिः। आ॒ऽसद॑म्॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब आठ ऋचावाले नवमें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के सदृश होने से विद्वान् का सत्कार कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथाग्निसादृश्येन विद्वत्सत्कारमाह ॥
हे अग्ने ! यस्त्वं बर्हिरासदं देवयुं जनमीमा इयेथ तस्मान्महानस्यस्मान् मृळ ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अग्नी, राजा, प्रजा व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.