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अग्ने॑ क॒दा त॑ आनु॒षग्भुव॑द्दे॒वस्य॒ चेत॑नम्। अधा॒ हि त्वा॑ जगृभ्रि॒रे मर्ता॑सो वि॒क्ष्वीड्य॑म् ॥२॥

English Transliteration

agne kadā ta ānuṣag bhuvad devasya cetanam | adhā hi tvā jagṛbhrire martāso vikṣv īḍyam ||

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Pad Path

अग्ने॑। क॒दा। ते॒। आ॒नु॒षक्। भुव॑त्। दे॒वस्य॑। चेत॑नम्। अध॑। हि। त्वा॒। ज॒गृ॒भ्रि॒रे। मर्ता॑सः। वि॒क्षु । ईड्य॑म्॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:7» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्निपदवाच्य ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) परमात्मन् ! (देवस्य) सुख देनेवाले और सर्वत्र प्रकाशमान (ते) आपके मनुष्य (कदा) किस काल में (आनुषक्) अनुकूल (भुवत्) हो (अधा) इसके अनन्तर (मर्त्तासः) मनुष्य लोग (हि) निश्चय से (विक्षु) मनुष्यरूप प्रजाओं में (ईड्यम्) स्तुति करने योग्य (चेतनम्) अनन्त विज्ञान आदि से युक्त (त्वा) आपको कब (जगृभ्रिरे) ग्रहण करें, ऐसी हम लोग इच्छा करें ॥२॥
Connotation: - हे परमेश्वर ! हम लोग आपकी निरन्तर प्रार्थना करें और आपकी कृपा से ये सब मनुष्य आपके भक्त, आपकी आज्ञा के अनुकूल और आपके उपासक कब होंगे। हे कृपालो अन्तर्यामिन् ! दया करके सब को अपने में प्रीतिमान् शीघ्र करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निपदवाच्येश्वरविषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! देवस्य ते मनुष्यः कदाऽऽनुषग्भुवदधा मर्त्तासो हि विक्ष्वीड्यं चेतनं त्वा कदा जगृभ्रिर इति वयमिच्छेम ॥२॥

Word-Meaning: - (अग्ने) परमात्मन् ! (कदा) कस्मिन् काले (ते) तव (आनुषक्) अनुकूलः (भुवत्) भवेत् (देवस्य) सुखदातुः सर्वत्र प्रकाशमानस्य (चेतनम्) अनन्तविज्ञानादियुक्तम् (अधा) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) खलु (त्वा) त्वाम् (जगृभ्रिरे) गृह्णीयुः (मर्त्तासः) मनुष्याः (विक्षु) मनुष्यप्रजासु (ईड्यम्) प्रशंसितुं योग्यम् ॥२॥
Connotation: - हे परमेश्वर ! वयं त्वां सततं प्रार्थयेम भवतः कृपया इमे सर्वे मनुष्या भवद्भक्ता भवदाज्ञानुकूला भवदुपासकाः कदा भविष्यन्ति। हे कृपालोऽन्तर्यामिन् करुणां विधाय सर्वान्त्स्वस्मिन् प्रीतिमतः सद्यः कुर्विति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे परमेश्वरा ! आम्ही निरंतर तुझी प्रार्थना करावी व तुझ्या कृपेने ही सर्व माणसे, तुझे भक्त, तुझ्या आज्ञेच्या अनुकूल कधी वागतील? व तुझे उपासक कधी होतील? हे कृपाळू अन्तर्यामी । तुझ्या दयेने सर्वजण तुझ्या भक्तीत रममाण होऊ देत. ॥ २ ॥