अका॑रि॒ ब्रह्म॑ समिधान॒ तुभ्यं॒ शंसा॑त्यु॒क्थं यज॑ते॒ व्यू॑ धाः। होता॑रम॒ग्निं मनु॑षो॒ नि षे॑दुर्नम॒स्यन्त॑ उ॒शिजः॒ शंस॑मा॒योः ॥११॥
akāri brahma samidhāna tubhyaṁ śaṁsāty ukthaṁ yajate vy ū dhāḥ | hotāram agnim manuṣo ni ṣedur namasyanta uśijaḥ śaṁsam āyoḥ ||
अका॑रि। ब्रह्म॑। स॒म्ऽइ॒धा॒न॒। तुभ्य॑म्। शंसा॑ति। उ॒क्थम्। यज॑ते। वि। ऊ॒म् इति॑। धाः॒। होता॑रम्। अ॒ग्निम्। मनु॑षः। नि। से॒दुः॒। न॒म॒स्यन्तः॑। उ॒शिजः॑। शंस॑म्। आ॒योः॥११॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे समिधान विद्वन् ! ये नमस्यन्त उशिजो मनुष आयोः शंसं होतारमग्निं निषेदुर्य्यस्तुभ्यमुक्थं ब्रह्म शंसाति यजते यैस्त्वमैश्वर्य्यमकारि तान् व्युधाः ॥११॥
MATA SAVITA JOSHI
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