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सिन्धो॑रिव प्राध्व॒ने शू॑घ॒नासो॒ वात॑प्रमियः पतयन्ति य॒ह्वाः। घृ॒तस्य॒ धारा॑ अरु॒षो न वा॒जी काष्ठा॑ भि॒न्दन्नू॒र्मिभिः॒ पिन्व॑मानः ॥७॥

English Transliteration

sindhor iva prādhvane śūghanāso vātapramiyaḥ patayanti yahvāḥ | ghṛtasya dhārā aruṣo na vājī kāṣṭhā bhindann ūrmibhiḥ pinvamānaḥ ||

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Pad Path

सिन्धोः॑ऽइव। प्र॒ऽअ॒ध्व॒ने। शू॒घ॒नासः॑। वात॑ऽप्रमियः। प॒त॒य॒न्ति॒। य॒ह्वाः। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। अ॒रु॒षः। न। वा॒जी। काष्ठाः॑। भि॒न्दन्। ऊ॒र्मिभिः॑। पिन्व॑मानः ॥७॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:58» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब जलदृष्टान्त से वाणीविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (पिन्वमानः) प्रसन्न करता हुआ मैं जैसे (शूघनाशः) शीघ्रगामिनी (यह्वाः) बड़ी (वातप्रमियः) वायु को मापनेवाली और (प्राध्वने) उत्तम प्रकार से चलने योग्य मार्ग के लिये (सिन्धोरिव) नदियों के अर्थात् नदियों की तरङ्गों के समान (पतयन्ति) पति के सदृश आचरण करती हैं तथा (अरुषः) लाल रूपवाले (वाजी) घोड़ों के (न) सदृश (घृतस्य) जल की (धाराः) धारा (ऊर्म्मिभिः) तरङ्गों से (काष्ठाः) दिशाओं के समान तटों को (भिन्दन्) विदीर्ण करती हैं, वैसे उपदेशों की वृष्टि करके अविद्याओं का नाश करता हूँ ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिन विद्वानों के नदियों के प्रवाह सदृश उत्तम उपदेश प्रचरित होते और घोड़ों के समान दुःखों के पार कराते हैं, वे ही बड़े श्रेष्ठ पुरुष हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ जलदृष्टान्तेन वाग्विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्याः ! पिन्वमानोऽहं यथा शूघनासो यह्वा वातप्रमियः प्राध्वने सिन्धोरिव पतयन्त्यरुषो वाजी न घृतस्य धारा ऊर्म्मिभिः काष्ठा भिन्दँस्तथोपदेशान् वर्षयित्वाऽविद्यां भिनद्मि ॥७॥

Word-Meaning: - (सिन्धोरिव) नद्या इव (प्राध्वने) प्रकृष्टतया गन्तव्याय मार्गाय (शूघनासः) आशुगन्त्र्यः (वातप्रमियः) या वातं वायुं प्रमिन्वन्ति ताः (पतयन्ति) पतिरिवाचरन्ति (यह्वाः) महत्यः (घृतस्य) जलस्य (धाराः) (अरुषः) अरुणरूपः (न) इव (वाजी) अश्वः (काष्ठाः) दिश इव तटीः (भिन्दन्) विदृणन्ति (ऊर्म्मिभिः) तरङ्गैः (पिन्वमानः) प्रसादयन् ॥७॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । येषां विदुषां नदीप्रवाहा इव सदुपदेशाश्चलन्ति अश्व इव दुःखान्तं गमयन्ति ते एव महान्तः सन्तः सन्ति ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या विद्वानांचे नदीच्या प्रवाहाप्रमाणे उपदेश प्रचारित होतात व घोड्याप्रमाणे तीव्रतेने ते दुःखातून पार पाडतात तेच श्रेष्ठ पुरुष असतात. ॥ ७ ॥