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ए॒ता अ॑र्षन्ति॒ हृद्या॑त्समु॒द्राच्छ॒तव्र॑जा रि॒पुणा॒ नाव॒चक्षे॑। घृ॒तस्य॒ धारा॑ अ॒भि चा॑कशीमि हिर॒ण्ययो॑ वेत॒सो मध्य॑ आसाम् ॥५॥

English Transliteration

etā arṣanti hṛdyāt samudrāc chatavrajā ripuṇā nāvacakṣe | ghṛtasya dhārā abhi cākaśīmi hiraṇyayo vetaso madhya āsām ||

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Pad Path

ए॒ताः। अ॒र्ष॒न्ति॒। हृद्या॑त्। स॒मु॒द्रात्। श॒तऽव्रजाः॑। रि॒पुणा॑। न। अ॒व॒ऽचक्षे॑। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। अ॒भि। चा॒क॒शी॒मि॒। हि॒र॒ण्ययः॑। वे॒त॒सः। मध्ये॑। आ॒सा॒म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:58» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब मेघविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (आसाम्) इन धाराओं के (मध्ये) मध्य में (हिरण्ययः) तेजःस्वरूप वा सुवर्णस्वरूप (वेतसः) सुन्दर मैं जो (घृतस्य) जल की (एताः) ये (शतव्रजाः) अपरिमित गतिवाली (धाराः) धारायें (हृद्यात्) हृदय के प्रिय (समुद्रात्) अन्तरिक्ष से (अर्षन्ति) प्राप्त होती हैं, उनको (अवचक्षे) कहने को (अभि, चाकशीमि) प्रकाश करता हूँ और (रिपुणा) शत्रु के साथ (न) नहीं वसता हूँ, वैसे आप लोग जानो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! जैसे आकाश से गिरी हुई वर्षा सब जगत् का पालन करती हैं, वैसे ही आप लोगों से निकली हुई विज्ञान की वाणियाँ सब जगत् की रक्षा करती हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मेघविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽऽसां मध्ये हिरण्ययो वेतसोऽहं या घृतस्यैताः शतव्रजा धारा हृद्यात् समुद्रादर्षन्ति ता अवचक्षेऽभि चाकशामि रिपुणा सह न वसामि तथा यूयं विजानीत ॥५॥

Word-Meaning: - (एताः) (अर्षन्ति) प्राप्नुवन्ति (हृद्यात्) हृदयस्य प्रियात् (समुद्रात्) अन्तरिक्षात् (शतव्रजाः) अपरिमितगतयः (रिपुणा) शत्रुणा (न) (अवचक्षे) प्रख्यातम् (घृतस्य) उदकस्य (धाराः) (अभि, चाकशीमि) प्रकाशयामि (हिरण्ययः) तेजोमयः सुवर्णमयो वा (वेतसः) कमनीयः (मध्ये) (आसाम्) धाराणाम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथाऽऽकाशात् पतिता वर्षा सर्वं जगत् पालयन्ति तथैव युष्मन्निसृता विज्ञानस्य वाचः सर्वं जगद्रक्षन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! आकाशातील वृष्टीमुळे जगाचे पालन होते. तसेच तुमच्याजवळ असलेल्या वैज्ञानिक वाणीमुळे जगाचे रक्षण होते. ॥ ५ ॥