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आ पर्व॑तस्य म॒रुता॒मवां॑सि दे॒वस्य॑ त्रा॒तुर॑व्रि॒ भग॑स्य। पात्पति॒र्जन्या॒दंह॑सो नो मि॒त्रो मि॒त्रिया॑दु॒त न॑ उरुष्येत् ॥५॥

English Transliteration

ā parvatasya marutām avāṁsi devasya trātur avri bhagasya | pāt patir janyād aṁhaso no mitro mitriyād uta na uruṣyet ||

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Pad Path

आ। पर्व॑तस्य। म॒रुता॑म्। अवां॑सि। दे॒वस्य॑। त्रातुः। अ॒व्रि॒। भग॑स्य। पात्। पतिः॑। जन्या॑त्। अंह॑सः। नः॒। मि॒त्रः। मित्रिया॑त्। उ॒त। नः॒। उ॒रु॒ष्ये॒त् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:55» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे मैं (पर्वतस्य) मेघ के (देवस्य) उत्तम सुख प्राप्त करानेवाले के (भगस्य) ऐश्वर्य्य के (त्रातुः) रक्षा करनेवाले और (मरुताम्) मनुष्यों के (अवांसि) अनेक प्रकार रक्षणों का मैं (आ, अव्रि) स्वीकार करता हूँ, वैसे (पतिः) स्वामी आप (नः) हम लोगों की (जन्यात्) उत्पन्न होनेवाले (अंहसः) अपराध से (पात्) रक्षा करो और (नः) हम लोगों को (उत) तो (मित्रः) मित्र (मित्रियात्) मित्र से (उरुष्येत्) सेवन करे ॥५॥
Connotation: - जो मनुष्य सत्य के जानने और उसके आचरण करने की इच्छा करें, वे सत्य ज्ञान को प्राप्त होकर सत्य के आचरण करनेवाले होवें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वन् ! यथाऽहं पर्वतस्य देवस्य भगस्य त्रातुर्मरुतामवांस्यहमाऽऽव्रि तथा पतिर्भवान्नो जन्यादंहसः पान्न उत मित्रो मित्रियादुरुष्येत् ॥५॥

Word-Meaning: - (आ) (पर्वतस्य) मेघस्य (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अवांसि) बहुविधानि रक्षणानि (देवस्य) दिव्यसुखप्रापकस्य (त्रातुः) रक्षकस्य (अव्रि) आवृणोमि (भगस्य) ऐश्वर्य्यस्य (पात्) रक्षतु (पतिः) स्वामी (जन्यात्) उत्पत्स्यमानात् (अंहसः) अपराधात् (नः) अस्मान् (मित्रः) सखा (मित्रियात्) मित्रात् (उत) (नः) अस्मान् (उरुष्येत्) सेवेत ॥५॥
Connotation: - ये मनुष्याः सत्यं ज्ञातुमाचरितुमिच्छेयुस्ते सत्यं ज्ञानं प्राप्य सत्याचारिणो भवेयुः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे सत्य जाणण्याची इच्छा करतात व त्याप्रमाणे आचरण करण्याची इच्छा करतात, ती सत्य ज्ञान प्राप्त करून सत्याचरण करणारी असतात. ॥ ५ ॥