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अभू॑द्दे॒वः स॑वि॒ता वन्द्यो॒ नु न॑ इ॒दानी॒मह्न॑ उप॒वाच्यो॒ नृभिः॑। वि यो रत्ना॒ भज॑ति मान॒वेभ्यः॒ श्रेष्ठं॑ नो॒ अत्र॒ द्रवि॑णं॒ यथा॒ दध॑त् ॥१॥

English Transliteration

abhūd devaḥ savitā vandyo nu na idānīm ahna upavācyo nṛbhiḥ | vi yo ratnā bhajati mānavebhyaḥ śreṣṭhaṁ no atra draviṇaṁ yathā dadhat ||

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Pad Path

अभू॑त्। दे॒वः। स॒वि॒ता। वन्द्यः॑। नु। नः॒। इ॒दानी॑म्। अह्नः॑। उ॒प॒ऽवाच्यः॑। नृऽभिः॑। वि। यः। रत्ना॑। भज॑ति। मा॒न॒वेभ्यः॑। श्रेष्ठ॑म्। नः॒। अत्र॑। द्रवि॑णम्। यथा॑। दध॑त् ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:54» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले चौपनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सविता परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (इदानीम्) इस समय (अह्नः) दिन के मध्य में जैसे (नृभिः) नायक अर्थात् मुखिया मनुष्यों से (उपवाच्यः) उपदेश योग्य और (नः) हम लोगों के (वन्द्यः) प्रशंसा करने योग्य (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों को और (देवः) सम्पूर्ण सुखों को देनेवाला (अभूत्) होता है जो (नः) हम (मानवेभ्यः) विचारशीलों के लिये (रत्ना) रमण करने योग्य धनों को (यथा) जैसे (वि, भजति) बाँटता और (अत्र) इस संसार में (श्रेष्ठम्) अत्यन्त उत्तम (द्रविणम्) धन वा यश को (नु) शीघ्र (दधत्) धारण करे, वैसे ही हम लोगों को सत्कार करने योग्य है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। नष्ट उनका भाग्य जो सम्पूर्ण ऐश्वर्य और यश के देनेवाले वन्दना करने योग्य तथा स्तुति, उपासना और उपदेश करने योग्य परमात्मा को छोड़ के अन्य की उपासना करते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सवितृगुणानाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य इदानीमह्नो यथा नृभिरुपवाच्यो नो वन्द्यः सविता देवोऽभूद्यो नो मानवेभ्यो रत्ना यथा विभजत्यत्र श्रेष्ठं द्रविणं नु दधत्तथैवाऽस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥१॥

Word-Meaning: - (अभूत्) भवति (देवः) सर्वसुखप्रदाता (सविता) सर्वैश्वर्य्यप्रदः (वन्द्यः) प्रशंसनीयः (नु) सद्यः (नः) अस्माकम् (इदानीम्) (अह्नः) दिनस्य मध्ये (उपवाच्यः) उपदेशनीयः (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (वि) (यः) (रत्ना) रमणीयानि धनानि (भजति) (मानवेभ्यः) मननशीलेभ्यः (श्रेष्ठम्) अत्युत्तमम् (नः) अस्मभ्यम् (अत्र) (द्रविणम्) धनं यशो वा (यथा) (दधत्) दध्यात् ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । नष्टं तेषां भाग्यं ये सकलैश्वर्य्यकीर्त्तिप्रदातारं वन्दनीयं स्तोतुमुपासितुमुपदेष्टुमर्हं परमात्मानं विहायाऽन्यं भजन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सविता, ईश्वर, विद्वान व पदार्थांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे संपूर्ण ऐश्वर्य व यश देणाऱ्या, वंदना करण्यायोग्य, स्तुती, उपासना आणि उपदेश करण्यायोग्य परमेश्वराला सोडून इतरांची उपासना करतात ते दुर्दैवी असतात. ॥ १ ॥