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बृ॒हत्सु॑म्नः प्रसवी॒ता नि॒वेश॑नो॒ जग॑तः स्था॒तुरु॒भय॑स्य॒ यो व॒शी। स नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता शर्म॑ यच्छत्व॒स्मे क्षया॑य त्रि॒वरू॑थ॒मंह॑सः ॥६॥

English Transliteration

bṛhatsumnaḥ prasavītā niveśano jagataḥ sthātur ubhayasya yo vaśī | sa no devaḥ savitā śarma yacchatv asme kṣayāya trivarūtham aṁhasaḥ ||

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Pad Path

बृ॒हत्ऽसु॒म्नः। प्र॒ऽस॒वि॒ता। नि॒ऽवेश॑नः। जग॑तः। स्था॒तुः। उभय॑स्य। यः। व॒शी। सः। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒। अ॒स्मे इति॑। क्षया॑य। त्रि॒ऽवरू॑थम्। अंह॑सः ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:53» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (नः) हम लोगों के लिये (बृहत्सुम्नः) अत्यन्त सुख का (प्रसवीता) उत्पन्न करनेवाला और (जगतः) जङ्गम अर्थात् चेतनता युक्त मनुष्य आदि और (स्थातुः) स्थिर स्थावर अर्थात् नहीं चलने-फिरनेवाले वृक्ष आदि जगत् के (निवेशनः) निवेश अर्थात् स्थिति का करनेवाला (उभयस्य) दो प्रकार के जगत् के (वशी) वश करने को समर्थ (देवः) दाता जगदीश्वर हम लोगों के लिये विद्या को (यच्छतु) देवे (सः) वह (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य से युक्त (अस्मे) हम लोगों के (क्षयाय) निवास के लिये (अंहसः) दुःख से अलग हुए (त्रिवरूथम्) तीन गृह जिसमें उस (शर्म) उत्तम प्रकार सुख देनेवाले स्थान को देवे, वही हम लोगों का उपासना करने योग्य देव हो ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो जगदीश्वर सब जगत् का नियामक और सब जीवों के निवास के लिये अनेक प्रकार के स्थान का रचनेवाला है, उसको छोड़ के अन्य किसी की भी उपासना न करो ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नो बृहत्सुम्नः प्रसवीता जगतः स्थातुर्निवेशन उभयस्य वशी देवो जगदीश्वरो नो विद्यां यच्छतु स सविताऽस्मे क्षयायांऽहसः पृथग्भूतं त्रिवरूथं शर्म यच्छतु स एवास्माकमुपासनीयो देवो भवतु ॥६॥

Word-Meaning: - (बृहत्सुम्नः) महतः सुखस्य (प्रसवीता) उत्पादकः। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (निवेशनः) निवेशस्य कर्त्ता (जगतः) जङ्गमस्य (स्थातुः) स्थिरस्य स्थावरस्य (उभयस्य) द्विविधस्य (यः) (वशी) वशीकर्त्तुं समर्थः (सः) (नः) अस्मभ्यम् (देवः) दाता (सविता) सकलैश्वर्यः (शर्म) सुसुखं गृहम् (यच्छतु) ददातु (अस्मे) अस्माकम् (क्षयाय) निवासाय (त्रिवरूथम्) त्रीणि वरूथानि गृहाणि यस्मिन् (अंहसः) दुःखात्पृथग्भूतम् ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो जगदीश्वरः सर्वस्य जगतो नियन्ता सर्वेषां जीवानां निवासायाऽनेकविधस्य स्थानस्य निर्माताऽस्ति तं विहायाऽन्यस्य कस्याप्युपासनां मा कुरुत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो जगदीश्वर सर्व जगाचा नियामक व सर्व जीवाच्या निवासासाठी अनेक प्रकारची स्थाने निर्माण करणारा आहे, त्याला सोडून इतर कुणाचीही उपासना करू नका. ॥ ६ ॥