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दि॒वो ध॒र्ता भुव॑नस्य प्र॒जाप॑तिः पि॒शङ्गं॑ द्रा॒पिं प्रति॑ मुञ्चते क॒विः। वि॒च॒क्ष॒णः प्र॒थय॑न्नापृ॒णन्नु॒र्वजी॑जनत्सवि॒ता सु॒म्नमु॒क्थ्य॑म् ॥२॥

English Transliteration

divo dhartā bhuvanasya prajāpatiḥ piśaṅgaṁ drāpim prati muñcate kaviḥ | vicakṣaṇaḥ prathayann āpṛṇann urv ajījanat savitā sumnam ukthyam ||

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Pad Path

दि॒वः। ध॒र्ता। भुव॑नस्य। प्र॒जाऽप॑तिः। पि॒शङ्ग॑म्। द्रा॒पिम्। प्रति॑। मु॒ञ्च॒ते॒। क॒विः। वि॒ऽच॒क्ष॒णः। प्र॒थय॑न्। आ॒ऽपृ॒णन्। उ॒रु। अजी॑जनत्। स॒वि॒ता। सु॒म्नम्। उ॒क्थ्य॑म् ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:53» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! जो यह (दिवः) प्रकाश और (भुवनस्य) अनेक भूगोलों से अलङ्कृत अर्थात् शोभित संसार का (धर्त्ता) धारण करनेवाला (प्रजापतिः) प्रजा का पालनकर्त्ता (कविः) तेजयुक्त दर्शनवाला (पिशङ्गम्) विचित्र रूपवाले (द्रापिम्) कवच को (प्रति, मुञ्चते) त्याग करता है और (विचक्षणः) अनेक प्रकार से पदार्थों का प्रकाश करनेवाला (प्रथयन्) विस्तार करता और (आपृणन्) सब प्रकार से पूर्ण करता हुआ (सविता) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों से युक्त करनेवाला वा समर्थ ऐश्वर्य्यों के देने का निमित्त (उरु) बहुत (उक्थ्यम्) प्रशंसा करने योग्य (सुम्नम्) सुख को (अजीजनत्) उत्पन्न करता है, वह आप लोगों को यथावत् जानने योग्य है ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस परमेश्वर ने प्रजा के धारण प्रकाश और पालन के लिये सूर्य्य बनाया, उसी परमेश्वर की उपासना करके बहुत सुख को प्राप्त होइये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! योऽयं दिवो भुवनस्य धर्त्ता प्रजापतिः कविः पिशङ्गं द्रापिं प्रति मुञ्चते विचक्षणः प्रथयन्नापृणन्त्सवितोरुक्थ्यं सुम्नमजीजनत् स युष्माभिर्यथावद्वेदितव्यः ॥२॥

Word-Meaning: - (दिवः) प्रकाशस्य (धर्त्ता) (भुवनस्य) अनेकभूगोलालङ्कृतस्य (प्रजापतिः) प्रजायाः पालकः (पिशङ्गम्) विचित्ररूपम् (द्रापिम्) कवचम् (प्रति) (मुञ्चते) त्यजति (कविः) क्रान्तदर्शनः (विचक्षणः) विविधपदार्थानां प्रकाशकः (प्रथयन्) विस्तारयन् (आपृणन्) समन्तात् पूरयन् (उरु) बहु (अजीजनत्) जनयति (सविता) सकलैश्वर्य्ययोक्ता प्रभ्वैश्वर्य्यदाननिमित्तो वा (सुम्नम्) सुखम् (उक्थ्यम्) प्रशंसनीयम् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! येन परमेश्वरेण प्रजाया धारणाय प्रकाशाय पालनाय सूर्य्यो निर्मितस्तमेव परमेश्वरमुपास्य बहु सुखं प्राप्नुत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! ज्या परमेश्वराने प्रजेचे धारण, प्रकाश व पालन करण्यासाठी सूर्य निर्माण केलेला आहे, त्याच परमेश्वराची उपासना करून पुष्कळ सुख प्राप्त करा. ॥ २ ॥