प्रति॒ ष्या सू॒नरी॒ जनी॑ व्यु॒च्छन्ती॒ परि॒ स्वसुः॑। दि॒वो अ॑दर्शि दुहि॒ता ॥१॥
prati ṣyā sūnarī janī vyucchantī pari svasuḥ | divo adarśi duhitā ||
प्रति॑। स्या। सू॒नरी॑। जनी॑। वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑। परि॑। स्वसुः॑। दि॒वः। अ॒द॒र्शि॒। दु॒हि॒ता ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब सात ऋचावाले बावनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उषा की तुल्यता से स्त्री के गुणों का वर्णन करते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथोषर्वत्स्त्रीगुणानाह ॥
हे मनुष्या ! या दिवः स्वसुर्जनी सूनरी परिव्युच्छन्ती दुहितेवोषाः प्रत्यदर्शि स्या जागृतेन मनुष्येण द्रष्टव्या ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात प्रभातवेळेप्रमाणे स्त्रियांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.