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तद्वो॑ दिवो दुहितरो विभा॒तीरुप॑ ब्रुव उषसो य॒ज्ञके॑तुः। व॒यं स्या॑म य॒शसो॒ जने॑षु॒ तद्द्यौश्च॑ ध॒त्तां पृ॑थि॒वी च॑ दे॒वी ॥११॥

English Transliteration

tad vo divo duhitaro vibhātīr upa bruva uṣaso yajñaketuḥ | vayaṁ syāma yaśaso janeṣu tad dyauś ca dhattām pṛthivī ca devī ||

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Pad Path

तत्। वः॒। दि॒वः॒। दु॒हि॒त॒रः॒। वि॒ऽभा॒तीः। उप॑। ब्रु॒वे॒। उ॒ष॒सः॒। य॒ज्ञऽके॑तुः। व॒यम्। स्या॒म॒। य॒शसः॑। जने॑षु। तत्। द्यौः। च॒। ध॒त्ताम्। पृ॒थि॒वी। च॒। दे॒वी ॥११॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:51» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पुरुष विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (विभातीः) प्रकाश करती हुईं (दिवः) प्रकाश की (दुहितरः) कन्याओं के सदृश वर्त्तमान (उषसः) प्रातर्वेला के सदृश स्त्रियाँ (वः) आप लोगों का जो विषय कहें (तत्) उसको (यज्ञकेतुः) यज्ञ का जनानेवाला मैं आप लोगों को (उप, ब्रुवे) उपदेश देता हूँ जैसे (तत्) उसको (देवी) प्रकाश (द्यौः) बिजुली (च) और (पृथिवी) पृथिवी (च) भी (धत्ताम्) धारण करें, वैसे (वयम्) हम लोग (जनेषु) विद्वानों में (यशसः) यशस्वी (स्याम) होवें ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो परस्पर जनों को उपदेश देकर सत्य का ग्रहण कराते हैं, वे सूर्य्य के सदृश प्रकाश करने और भूमि के सदृश प्रजा के धारण करनेवाले होते हैं ॥११॥ इस सूक्त में प्रातःकाल स्त्री और पुरुष के गुण कर्म वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह इक्क्यावनवाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पुरुषविषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! विभातीर्दिवो दुहितर उषस इव स्त्रियो वो यद् ब्रूयुस्तद्यज्ञकेतुरहं युष्मानुप ब्रुवे यथा तद्देवी द्यौश्च पृथिवी च धत्तां तथा वयं जनेषु यशसः स्याम ॥११॥

Word-Meaning: - (तत्) (वः) युष्माकम् (दिवः) प्रकाशस्य (दुहितरः) कन्या इव वर्त्तमानाः (विभातीः) प्रकाशयन्त्यः (उप) (ब्रुवे) उपदिशामि (उषसः) प्रातर्वेलायाः (यज्ञकेतुः) यज्ञस्य प्रापकः (वयम्) (स्याम) (यशसः) यशस्विनः (जनेषु) विद्वत्सु (तत्) (द्यौः) विद्युत् (च) (धत्ताम्) (पृथिवी) (च) (देवी) देदीप्यमाना ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये परस्परानुपदिश्य सत्यं ग्राहयन्ति ते सूर्यवत्प्रकाशका भूमिवत्प्रजाधर्त्तारो भवन्तीति ॥११॥ अत्रोषःस्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इत्येकाधिकपञ्चाशत्तमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे परस्परांना उपदेश करून सत्याचे ग्रहण करवितात ते सूर्याप्रमाणे प्रकाशक व भूमीप्रमाणे प्रजेला धारण करणारे असतात. ॥ ११ ॥