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धु॒नेत॑यः सुप्रके॒तं मद॑न्तो॒ बृह॑स्पते अ॒भि ये न॑स्तत॒स्रे। पृष॑न्तं सृ॒प्रमद॑ब्धमू॒र्वं बृह॑स्पते॒ रक्ष॑तादस्य॒ योनि॑म् ॥२॥

English Transliteration

dhunetayaḥ supraketam madanto bṛhaspate abhi ye nas tatasre | pṛṣantaṁ sṛpram adabdham ūrvam bṛhaspate rakṣatād asya yonim ||

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Pad Path

धु॒नऽइ॑तयः। सु॒ऽप्र॒के॒तम्। मद॑न्तः। बृह॑स्पते। अ॒भि। ये। नः॒। त॒त॒स्रे। पृष॑न्तम्। सृ॒प्रम्। अद॑ब्धम्। ऊ॒र्वम्। बृह॑स्पते। रक्ष॑तात्। अ॒स्य॒। योनि॑म् ॥२॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:50» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब कौन प्रशंसा के योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (बृहस्पते) बड़ी वाणी के पालन करनेवाले (ये) जो (मदन्तः) आनन्द देते हुए (धुनेतयः) धर्मात्मा जनों के कम्पानेवालों को कम्पानेवाले (सुप्रकेतम्) उत्तम तीक्ष्ण बुद्धिवाले (पृषन्तम्) विद्यादि उत्तम गुणों को सींचते हुए (सृप्रम्) उत्तम गुणों को प्राप्त (अदब्धम्) नहीं हिंसित (ऊर्वम्) हिंसा करनेवाले जन का (ततस्रे) नाश करते हैं और (नः) हम लोगों को (अभि) चारों ओर से नाश करते हैं, उनका निवारण करके आप उनका निवारण करो। हे (बृहस्पते) बड़ी वस्तुओं के पालन करनेवाले ! जिनके रोकने से (अस्य) इस विद्याव्यवहार के (योनिम्) कारण की आप (रक्षतात्) रक्षा करें ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो लोग डाकू और चोरादिकों का निवारण कर धार्मिक विद्वानों को सुख दे कर अङ्ग और उपाङ्गों के सहित विद्या के व्यवहार को बढ़ावें, उनका आप लोग सत्कार करें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ के प्रशंसनीया भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे बृहस्पते ! ये मदन्तो धुनेतयः सुप्रकेतं पृषन्तं सृप्रमदब्धमूर्वं जनं ततस्रे नोऽस्माँश्चाभि ततस्रे तान्निवार्य तांस्त्वं निवारय। हे बृहस्पते ! येषां निरोधेनास्य योनिं भवान् रक्षतात् ॥२॥

Word-Meaning: - (धुनेतयः) ये धुनान् धर्मात्मनां कम्पकान् कम्पयन्ति ते (सुप्रकेतम्) सुष्ठु प्रकृष्टः केतः प्रज्ञा यस्य तमध्यापकम् (मदन्तः) आनन्दयन्तः (बृहस्पते) बृहत्या वाचः पालक (अभि) (ये) (नः) अस्मान् (ततस्रे) उपक्षयन्ति (पृषन्तम्) विद्यादिशुभगुणान् सिञ्चन्तम् (सृप्रम्) प्राप्तशुभगुणम् (अदब्धम्) अहिंसितम् (ऊर्वम्) हिंसकम् (बृहस्पते) बृहतां पालक (रक्षतात्) (अस्य) विद्याव्यवहारस्य (योनिम्) कारणम् ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये दस्युचोरादीन्निवार्य्य धार्म्मिकान् विदुषः सुखयित्वा साङ्गोपाङ्गं विद्यावृद्धिव्यवहारं वर्धयेयुस्ते युष्माभिः सत्कर्त्तव्याः स्युः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे लोक दस्यू व चोर इत्यादींचे निवारण करून धार्मिक विद्वानांना सुख देऊन अंग उपांगासह विद्या-व्यवहार वाढवितात, त्यांचा तुम्ही सत्कार करा. ॥ २ ॥