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यस्त॒स्तम्भ॒ सह॑सा॒ वि ज्मो अन्ता॒न्बृह॒स्पति॑स्त्रिषध॒स्थो रवे॑ण। तं प्र॒त्नास॒ ऋष॑यो॒ दीध्या॑नाः पु॒रो विप्रा॑ दधिरे म॒न्द्रजि॑ह्वम् ॥१॥

English Transliteration

yas tastambha sahasā vi jmo antān bṛhaspatis triṣadhastho raveṇa | tam pratnāsa ṛṣayo dīdhyānāḥ puro viprā dadhire mandrajihvam ||

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Pad Path

यः। त॒स्तम्भ॑। सह॑सा। वि। ज्मः। अन्ता॑न्। बृह॒स्पतिः॑। त्रि॒ऽस॒ध॒स्थः। रवे॑ण। तम्। प्र॒त्नासः॑। ऋ॑षयः। दीध्या॑नाः। पु॒रः। विप्राः॑। द॒धि॒रे॒। म॒न्द्रऽजि॑ह्वम् ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:50» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:5» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले पचासवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (त्रिषधस्थः) तीन तुल्य स्थानों वा कर्म, उपासना ज्ञान में स्थित होनेवाला (बृहस्पतिः) महान् वा बड़े पदार्थों का पालनेवाला सूर्य्य (सहसा) बल से (ज्मः) पृथिवी के (अन्तान्) समीपों को (वि, तस्तम्भ) धारण करे, वैसे कर्मोपासना और ज्ञान में स्थित होने और बड़े पदार्थों का पालनेवाला (यः) जो विद्वान् (रवेण) उपदेश से जनों को धारण करे (तम्) उस (मन्द्रजिह्वम्) आनन्द देने और कल्याण करनेवाली जिह्वा से युक्त विद्वान् को इनके (पुरः) बड़े नगरों को (दीध्यानाः) उत्तम गुणों से प्रकाशित करते हुए (प्रत्नासः) प्राचीन और प्रथम जिन्होंने विद्या पढ़ी ऐसे (ऋषयः) मन्त्रों के अर्थ जाननेवाले (विप्राः) बुद्धिमान् जन (दधिरे) धारण करें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य अपनी आकर्षणशक्ति से भूगोलों को धारण करता और भूगोलों में वर्त्तमान पदार्थों को धारण करता है, वैसे ही विद्वान् लोग सब मनुष्यों को धारण करके उनके अन्तःकरणों को प्रकाशित करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा त्रिषधस्थो बृहस्पतिः सूर्य्यः सहसा ज्मोऽन्तान् वि तस्तम्भ तथा त्रिषधस्थो बृहस्पतिर्यो विद्वान् रवेण जनान् दध्यात् तं मन्द्रजिह्वमेषां पुरो दीध्यानाः प्रत्नास ऋषयो विप्रा दधिरे ॥१॥

Word-Meaning: - (यः) विद्वान् राजा (तस्तम्भ) धरेत् (सहसा) बलेन (वि) (ज्मः) पृथिव्याः (अन्तान्) समीपान् (बृहस्पतिः) महान् बृहतां पतिर्वा (त्रिषधस्थः) त्रिषु समानस्थानेषु कर्मोपासनाज्ञानेषु वा तिष्ठति (रवेण) उपदेशेन (तम्) (प्रत्नासः) प्राक्तनाः पूर्वमधीतविद्याः (ऋषयः) मन्त्रार्थवेत्तारः (दीध्यानाः) शुभैर्गुणैः प्रकाशमानाः (पुरः) महान्ति नगराणि (विप्राः) मेधाविनः (दधिरे) धरन्तु (मन्द्रजिह्वम्) मन्द्राऽऽनन्ददा कल्याणकरी जिह्वा यस्य तं विद्वांसम् ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यस्स्वाकर्षणेन भूगोलान् दधाति तत्रस्थान् पदार्थांश्च तथैव विद्वांसो सर्वान् मनुष्यान् धृत्वा तेषामन्तःकरणानि प्रकाशयेयुः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान, राजा, प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन आहे. या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा सूर्य आपल्या आकर्षणशक्तीने भूगोलांना धारण करतो व भूगोलातील पदार्थांनाही धारण करतो. तसेच विद्वान लोकांनी माणसांना धारण करून त्यांच्या अंतःकरणांना प्रकाशित करावे. ॥ १ ॥