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अध॑ द्युता॒नः पि॒त्रोः सचा॒साम॑नुत॒ गुह्यं॒ चारु॒ पृश्नेः॑। मा॒तुष्प॒दे प॑र॒मे अन्ति॒ षद्गोर्वृष्णः॑ शो॒चिषः॒ प्रय॑तस्य जि॒ह्वा ॥१०॥

English Transliteration

adha dyutānaḥ pitroḥ sacāsāmanuta guhyaṁ cāru pṛśneḥ | mātuṣ pade parame anti ṣad gor vṛṣṇaḥ śociṣaḥ prayatasya jihvā ||

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Pad Path

अध॑। द्यु॒ता॒नः। पि॒त्रोः। सचा॑। आ॒सा। अम॑नुत। गुह्य॑म्। चारु॑। पृश्नेः॑। मा॒तुः। प॒दे। प॒र॒मे। अन्ति॑। सत्। गोः। वृष्णः॑। शो॒चिषः॑। प्रऽय॑तस्य। जि॒ह्वा॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:5» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे जिज्ञासुजनो ! (अध) इसके अनन्तर जो (पित्रोः) माता और पिता की उत्तेजना से (द्युतानः) प्रकाशमान (सचा) सत्य (आसा) मुख से (परमे) उत्तम (मातुः) माता के सदृश वर्त्तमान के (पदे) प्राप्त होने योग्य स्थान में (अन्ति) समीप (सत्) वर्त्तमान (गोः) गौ और (वृष्णः) वृष्टि करनेवाले के सदृश (शोचिषः) प्रकाशमान (प्रयतस्य) प्रयत्न करते हए की (जिह्वा) वाणी के सदृश जो (पृश्नेः) अन्तरिक्ष के मध्य में (चारु) सुन्दर (गुह्यम्) गुप्त है, उस जीवस्वरूप को (अमनुत) जानिये ॥१०॥
Connotation: - जैसे अन्तरिक्ष और पृथिवी के मध्य में वर्त्तमान सूर्य्य उत्तम प्रकार शोभित है और जैसे विद्वान् की वाणी विद्या का प्रकाश करनेवाली है और जैसे अन्तरिक्ष किसी से भी दूर नहीं है, वैसे ही उत्तम अपना आत्मारूप वस्तु और परमात्मा समीप में वर्त्तमान है, ऐसा जानना चाहिये ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे जिज्ञासवोऽध यः पित्रोर्द्युतानः सचासा परमे मातुष्पदेऽन्ति सद्गोर्वृष्ण इव शोचिषः प्रयतस्य जिह्वेव यत्पृश्नेश्चारु गुह्यमस्ति तज्जीवस्वरूपममनुत ॥१०॥

Word-Meaning: - (अध) अथ (द्युतानः) प्रकाशमानः (पित्रोः) जनकयोः (सचा) सत्येन (आसा) आस्येन (अमनुत) विजानीत (गुह्यम्) गुप्तम् (चारु) सुन्दरम् (पृश्नेः) अन्तरिक्षस्य मध्ये (मातुः) मातृवद्वर्त्तमानस्य (पदे) प्रापणीये (परमे) उत्कृष्टे (अन्ति) समीपे (सत्) वर्त्तमानम् (गोः) (वृष्णः) वर्षकस्य (शोचिषः) प्रकाशमानस्य (प्रयतस्य) प्रयत्नं कुर्वतः (जिह्वा) वाणी ॥१०॥
Connotation: - यथा द्यावापृथिव्योर्मध्ये वर्त्तमानस्सूर्य्यः सुशोभितोऽस्ति यथा विदुषो वाणी विद्याप्रकाशिका वर्तते यथाऽन्तरिक्षं कस्मादपि दूरे न भवति तथैव स्वात्मवस्तु परमात्मा च सन्निकटे वर्त्तत इति वेदनीयम् ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा अंतरिक्ष व पृथ्वीमध्ये असलेला सूर्य सुशोभित होतो व जशी विद्वानाची वाणी विद्या प्रकट करते व जसे अंतरिक्ष कुणापासूनही दूर नाही, तशी स्वात्मरूप वस्तू परमेश्वरासमीप आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ १० ॥