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आ नो॑ यातं दि॒वो अच्छा॑ पृथि॒व्या हि॑र॒ण्यये॑न सु॒वृता॒ रथे॑न। मा वा॑म॒न्ये नि य॑मन्देव॒यन्तः॒ सं यद्द॒दे नाभिः॑ पू॒र्व्या वा॑म् ॥५॥

English Transliteration

ā no yātaṁ divo acchā pṛthivyā hiraṇyayena suvṛtā rathena | mā vām anye ni yaman devayantaḥ saṁ yad dade nābhiḥ pūrvyā vām ||

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Pad Path

आ। नः॒। या॒त॒म्। दि॒वः। अच्छ॑। पृ॒थि॒व्याः। हि॒र॒ण्यये॑न। सु॒ऽवृता॑। रथे॑न। मा। वा॒म्। अ॒न्ये। नि। य॒म॒न्। दे॒व॒ऽयन्तः॑। सम्। यत्। द॒दे। नाभिः॑। पू॒र्व्या। वा॒म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:44» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा और अमात्य विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पूर्व्या) प्राचीनों से किये हुओं में चतुर राजा और मन्त्री जनो ! (वाम्) आप दोनों के (सुवृता) सुन्दर परदे से युक्त (हिरण्ययेन) सुवर्ण आदि से शोभित (रथेन) विमान आदि वाहन से (पृथिव्याः) भूमि की (दिवः) कामना करते हुए (नः) हम लोगों को (अच्छा) उत्तम प्रकार (आ, यातम्) प्राप्त होओ जिससे (अन्ये) अन्य जन (देवयन्तः) कामना करते हुए (वाम्) आप दोनों से (मा) नहीं (नि, यमन्) निग्रह करें और (यत्) जिसको मैं (नाभिः) नाभि के सदृश वर्त्तमान आप दोनों को (सम्, ददे) अच्छे प्रकार देता हूँ, उसका ग्रहण करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब प्रजा और राजाजन, राजा और राजा के पुरुषों के सङ्ग की सदा ही इच्छा करें और सदैव सुख और दुःख को भोगें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजामात्यविषयमाह ॥

Anvay:

हे पूर्व्या राजाऽमात्यौ ! वां सुवृता हिरण्ययेन रथेन पृथिव्या दिवो नोऽच्छाऽऽयातम्। यतोऽन्ये देवयन्तो वां मा नियमन् यदहं नाभिरिव वां सन्ददे तद्गृह्णीतम् ॥५॥

Word-Meaning: - (आ) (नः) (यातम्) प्राप्नुतम् (दिवः) कामयमानाम् (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पृथिव्याः) भूम्याः (हिरण्ययेन) सुवर्णादिनाऽलङ्कृतेन (सुवृता) शोभनावरणेन (रथेन) विमानादियानेन (मा) (वाम्) युवयोः (अन्ये) (नि) (यमन्) निग्रहं कुर्वन्तु (देवयन्तः) कामयन्तः (सम्) (यत्) (ददे) ददामि (नाभिः) नाभिरिव वर्त्तमानः (पूर्व्या) पूर्वैः कृतेषु कुशलौ (वाम्) युवाभ्याम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वे प्रजाराजजना राज्ञो राजपुरुषाणाञ्च सङ्गं सदैवेच्छेयुः सदैव सुखदुःखे भुञ्जीरन् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व प्रजा व राजजनांनी राजा व राजपुरुषांच्या संगतीची इच्छा करावी व सदैव सुख व दुःख भोगावे. ॥ ५ ॥