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हि॒र॒ण्यये॑न पुरुभू॒ रथे॑ने॒मं य॒ज्ञं ना॑स॒त्योप॑ यातम्। पिबा॑थ॒ इन्मधु॑नः सो॒म्यस्य॒ दध॑थो॒ रत्नं॑ विध॒ते जना॑य ॥४॥

English Transliteration

hiraṇyayena purubhū rathenemaṁ yajñaṁ nāsatyopa yātam | pibātha in madhunaḥ somyasya dadhatho ratnaṁ vidhate janāya ||

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Pad Path

हि॒र॒ण्यये॑न। पु॒रु॒भू॒ इति॑ पुरुऽभू। रथे॑न। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। ना॒स॒त्या॒। उप॑। या॒त॒म्। पिबा॑थः। इत्। मधु॑नः। सो॒म्यस्य॑। दध॑थः। रत्न॑म्। वि॒ध॒ते। जना॑य ॥४॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:44» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (पुरुभू) बहुतों की भावना कराने और (नासत्या) सत्य आचरणवाले अध्यापक और उपदेशक जनो ! आप दोनों (हिरण्ययेन) ज्योतिर्मय और सुवर्ण आदि से शोभित (रथेन) वाहन से (इमम्) इस (यज्ञम्) पढ़ाने और पढ़ने रूप यज्ञ को (उप, यातम्) प्राप्त होओ और (मधुनः) मधुर आदि गुणों से युक्त (सोम्यस्य) सोमलतारूप ओषधियों में उत्पन्न पदार्थ के रस का (पिबाथः) पान करो और (विधते) पुरुषार्थ को करते हुए (जनाय) मनुष्य के लिये (रत्नम्) सुन्दर धन को (दधथः) तुम धारण करते हो वे दोनों (इत्) ही सुखी कैसे न होओ ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो शिल्पविद्या के प्रचार करनेवाले हों, वे ही संसार के सुख करनेवाले होवें ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे पुरुभू नासत्याऽश्विनौ ! युवां हिरण्ययेन रथेनेमं यज्ञमुपयातं मधुनः सोम्यस्य रसं पिबाथो विधते जनाय रत्नं दधथस्तावित्सुखिनौ कथं न भवेतम् ॥४॥

Word-Meaning: - (हिरण्ययेन) ज्योतिर्मयेन सुवर्णाद्यलङ्कृतेन (पुरुभू) यो पुरून् भावयतस्तौ (रथेन) यानेन (इमम्) (यज्ञम्) अध्यापनाऽध्ययनाख्यम् (नासत्या) सत्याचरणावध्यापकोपदेशकौ (उप) (यातम्) (पिबाथः) पिबतम् (इत्) एव (मधुनः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (सोम्यस्य) सोमेषु भवस्य (दधथः) (रत्नम्) रमणीयं धनम् (विधते) पुरुषार्थं कुर्वते (जनाय) मनुष्याय ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये विद्याप्रचारकाः स्युस्त एव जगत्सुखकरा भवेयुः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे शिल्पविद्येचे प्रचारक असतात तेच जगात सुख देणारे असतात. ॥ ४ ॥