क उ॑ श्रवत्कत॒मो य॒ज्ञिया॑नां व॒न्दारु॑ दे॒वः क॑त॒मो जु॑षाते। कस्ये॒मां दे॒वीम॒मृते॑षु॒ प्रेष्ठां॑ हृ॒दि श्रे॑षाम सुष्टु॒तिं सु॑ह॒व्याम् ॥१॥
ka u śravat katamo yajñiyānāṁ vandāru devaḥ katamo juṣāte | kasyemāṁ devīm amṛteṣu preṣṭhāṁ hṛdi śreṣāma suṣṭutiṁ suhavyām ||
कः। ऊ॒म् इति॑। श्र॒व॒त्। क॒त॒मः॒। य॒ज्ञिया॑नाम्। व॒न्दारु॑। दे॒वः। क॒त॒मः। जु॒षा॒ते॒। कस्य॑। इ॒माम्। दे॒वीम्। अ॒मृते॑षु। प्रेष्ठा॑म्। हृ॒दि। श्रे॒षा॒म॒। सु॒ऽस्तु॒तिम्। सु॒ऽह॒व्याम् ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब सात ऋचावाले तेंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापकोपदेशकविषय में प्रश्नोत्तर विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथाध्यापकोपदेशकविषये प्रश्नोत्तरविषयमाह ॥
हे विद्वन् ! क उ कतमो देवो यज्ञियानां वन्दारु श्रवत्कतमश्च जुषाते। कस्य हृदीमां प्रेष्ठां सुष्टुतिं सुहव्याममृतेषु देवीं श्रेषाम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात अध्यापक व उपदेशक, शिकणाऱ्या व उपदेश ऐकणाऱ्याचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.