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हं॒सः शु॑चि॒षद्वसु॑रन्तरिक्ष॒सद्धोता॑ वेदि॒षदति॑थिर्दुरोण॒सत्। नृ॒षद्व॑र॒सदृ॑त॒सद्व्यो॑म॒सद॒ब्जा गो॒जा ऋ॑त॒जा अ॑द्रि॒जा ऋ॒तम् ॥५॥

English Transliteration

haṁsaḥ śuciṣad vasur antarikṣasad dhotā vediṣad atithir duroṇasat | nṛṣad varasad ṛtasad vyomasad abjā gojā ṛtajā adrijā ṛtam ||

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Pad Path

हं॒सः। शु॒चि॒ऽसत्। वसुः॑। अ॒न्त॒रि॒क्ष॒ऽसत्। होता॑। वे॒दि॒ऽसत्। अति॑थिः। दुरो॒ण॒ऽसत्। नृ॒ऽसत्। व॒र॒ऽसत्। ऋ॒त॒ऽसत्। व्यो॒म॒ऽसत्। अ॒प्ऽजाः। गो॒ऽजाः। ऋ॒त॒ऽजाः। अ॒द्रि॒ऽजाः। ऋ॒तम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:40» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (शुचिषत्) पवित्रों में स्थित होने (वसुः) शरीरादिकों में रहने (अन्तरिक्षसत्) अन्तरिक्ष वा आकाश में स्थित होने (होता) दान वा ग्रहण करने और (वेदिषत्) वेदी पर स्थित होनेवाला (अतिथिः) जिसकी कोई तिथि नियत न हो वह (दुरोणसत्) गृह में (नृषत्) मनुष्यों में (वरसत्) श्रेष्ठों में (व्योमसत्) अन्तरिक्ष में (ऋतसत्) और सत्य में स्थित होनेवाला (अब्जाः) जलों से उत्पन्न (गोजाः) वा पृथिवी आदिकों में उत्पन्न (ऋतजाः) तथा सत्य से और (अद्रिजाः) मेघों से उत्पन्न हुआ (हंसः) पापों को हन्ता है और (ऋतम्) सत्य का आचरण करता है, वही जगदीश्वर का प्रिय होता है ॥५॥
Connotation: - जो जीव उत्तम गुण, कर्म और स्वभाववाले ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल वर्त्ताव करते हैं, वे ही परमेश्वर के साथ आनन्द को भोगते हैं ॥५॥ इस सूक्त में राजा और प्रजा के कृत्यों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥५॥ यह चालीसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसन्नृषद्वरसद् व्योमसदृतसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा हंस ऋतमाचरति स एव जगदीश्वरप्रियो भवति ॥५॥

Word-Meaning: - (हंसः) यो हन्ति पापानि सः (शुचिषत्) यः शुचिषु पवित्रेषु सीदति (वसुः) यः शरीरादिषु वसति (अन्तरिक्षसत्) योऽन्तरिक्ष आकाशे वा सीदति (होता) दाता आदाता वा (वेदिषत्) यो वेद्यां सीदति (अतिथिः) अनियततिथिः (दुरोणसत्) यो दुरोणे गृहे सीदति (नृषत्) यो नरेषु सीदति (वरसत्) यो वरेषु श्रेष्ठेषु सीदति (ऋतसत्) यः सत्ये सीदति (व्योमसत्) यो व्योम्नि सीदति (अब्जाः) योऽद्भ्यो जातः (गोजाः) यो गोषु पृथिव्यादिषु जातः (ऋतजाः) यः सत्याज्जातः (अद्रिजाः) योऽद्रेर्मेघाज्जातः (ऋतम्) ॥५॥
Connotation: - ये जीवाः शुभगुणकर्मस्वभावा ईश्वराज्ञानुकूला वर्त्तन्ते त एव परमेश्वरेण सहाऽऽनन्दं भुञ्जत इति ॥५॥ अत्र राजप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥५॥ इति चत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे जीव उत्तम गुण, कर्म, स्वभावयुक्त असून ईश्वराच्या आज्ञेनुकूल वर्तन करतात तेच परमेश्वराजवळ आनंद भोगतात. ॥ ५ ॥