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उ॒त स्मा॑स्य॒ द्रव॑तस्तुरण्य॒तः प॒र्णं न वेरनु॑ वाति प्रग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्ये॑व॒ ध्रज॑तो अङ्क॒सं परि॑ दधि॒क्राव्णः॑ स॒होर्जा तरि॑त्रतः ॥३॥

English Transliteration

uta smāsya dravatas turaṇyataḥ parṇaṁ na ver anu vāti pragardhinaḥ | śyenasyeva dhrajato aṅkasam pari dadhikrāvṇaḥ sahorjā taritrataḥ ||

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Pad Path

उ॒त। स्म॒। अ॒स्य॒। द्रव॑तः। तु॒र॒ण्य॒तः। प॒र्णम्। न। वेः। अनु॑। वा॒ति॒। प्र॒ऽग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्य॑ऽइव। ध्रज॑तः। अ॒ङ्क॒सम्। परि॑। द॒धि॒ऽक्राव्णः॑। स॒ह। ऊ॒र्जा। तरि॑त्रतः ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:40» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:14» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो जन (अङ्कसम्) लक्षण का (ध्रजतः) वेग से जाते हुए (प्रगर्धिनः) अत्यन्त लोभी (श्येनस्येव) वाज पक्षी के सदृश (ऊर्जा) पराक्रम से (तरित्रतः) मार्ग के पार उतारने और (दधिक्राव्णः) धारण करनेवाले की धारणा करनेवाले वायु (अस्य, उत) और इस (द्रवतः) दौड़ते तथा (तुरण्यतः) शीघ्र चलते हुए की (पर्णम्) प्रजापालना के (न) सदृश और (वेः) पक्षी के सदृश राजा की प्रजापालना के (स्म) ही (परि) सब प्रकार (अनु, वाति) पीछे चलता है उसके (सह) साथ मन्त्री जन सम्मति करें ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जिस राजा की वाज पक्षिणी के सदृश सेना पराक्रमवाली है, वह उसके द्वारा प्रजा का पालन करके डाकू चोरों का निवारण करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

यो जनोऽङ्कसं ध्रजतः प्रगर्धिनः श्येनस्येवोर्जा तरित्रतो दधिक्राव्णोऽस्योत द्रवतस्तुरण्यतः पर्णं न वेर्न राज्ञः पर्णं स्म पर्य्यनुवाति तेन सह सर्वेऽमात्या मन्त्रयन्तु ॥३॥

Word-Meaning: - (उत) अपि (स्म) एव (अस्य) (द्रवतः) धावतः (तुरण्यतः) सद्यो गच्छतः (पर्णम्) प्रजापालनम् (न) इव (वेः) पक्षिणः (अनु) (वाति) अनुगच्छति (प्रगर्धिनः) प्रलुब्धस्य (श्येनस्येव) (ध्रजतः) वेगेन धावतः (अङ्कसम्) लक्षणम् (परि) सर्वतः (दधिक्राव्णः) धर्त्तृधरस्य वायोः (सह) (ऊर्जा) पराक्रमेण (तरित्रतः) अध्वनस्तरिता ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यस्य राज्ञः श्येनेव सेना पराक्रमिणी वर्त्तते स तया प्रजापालनं कृत्वा दस्यून्निवारयेत् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! ज्या राजाची सेना श्येन पक्षिणीप्रमाणे पराक्रमी असते त्याने त्याद्वारे प्रजेचे पालन करून दुष्ट चोरांचे निवारण करावे. ॥ ३ ॥