द॒धि॒क्राव्ण॒ इदु॒ नु च॑र्किराम॒ विश्वा॒ इन्मामु॒षसः॑ सूदयन्तु। अ॒पाम॒ग्नेरु॒षसः॒ सूर्य॑स्य॒ बृह॒स्पते॑राङ्गिर॒सस्य॑ जि॒ष्णोः ॥१॥
dadhikrāvṇa id u nu carkirāma viśvā in mām uṣasaḥ sūdayantu | apām agner uṣasaḥ sūryasya bṛhaspater āṅgirasasya jiṣṇoḥ ||
द॒धि॒क्राऽव्णः॑। इत्। ऊ॒म् इति॑। नु। च॒र्कि॒रा॒म॒। विश्वाः॑। इत्। माम्। उ॒ष॒सः॑। सू॒द॒य॒न्तु॒। अ॒पाम्। अ॒ग्नेः। उ॒षसः॑। सूर्य॑स्य। बृह॒स्पतेः॑। आ॒ङ्गि॒र॒सस्य॑। जि॒ष्णोः ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब पाँच ऋचावाले चालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजा के कृत्य को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ राजप्रजाकृत्यमाह ॥
हे मनुष्या ! यथा विश्वा उषसो दधिक्राव्ण आयुर्मा च सूदयन्तु तथेदु वयं सर्वाः प्रजाश्चर्किराम यथा विश्वा उषसोऽपामग्ने सूर्य्यस्य बृहस्पतेराङ्गिरसस्य जिष्णोर्जयशीलस्य राज्ञो दोषान् सूदयन्तु तथेदेव वयं सर्वाः प्रजाः सत्कर्मसु नु चर्किराम ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.