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उ॒त स्मै॑नं वस्त्र॒मथिं॒ न ता॒युमनु॑ क्रोशन्ति क्षि॒तयो॒ भरे॑षु। नी॒चाय॑मानं॒ जसु॑रिं॒ न श्ये॒नं श्रव॒श्चाच्छा॑ पशु॒मच्च॑ यू॒थम् ॥४॥

English Transliteration

uta smainaṁ vastramathiṁ na tāyum anu krośanti kṣitayo bhareṣu | nīcāyamānaṁ jasuriṁ na śyenaṁ śravaś cācchā paśumac ca yūtham ||

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Pad Path

उ॒त। स्म॒। ए॒न॒म्। व॒स्त्र॒ऽमथि॑म्। न। ता॒युम्। अनु॑। क्रो॒श॒न्ति॒। क्षि॒तयः॑। भरे॑षु। नी॒चा। अय॑मानम्। जसु॑रिम्। न। श्ये॒नम्। श्रवः॑। च॒। अच्छ॑। प॒शु॒ऽमत्। च॒। यू॒थम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:38» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (क्षितयः) मनुष्य (भरेषु) संग्रामों में जिस (एनम्) इस राजा को (वस्त्रमथिम्) वस्त्रों को मथनेवाले (तायुम्) चोर को (न) जैसे वैसे (अनु, क्रोशन्ति) पीछे कोशते रोते हैं (जसुरिम्) प्रयत्न करते हुए (श्येनम्) पक्षिविशेष अर्थात् वाज के (न) सदृश (नीचा) नीच कर्मों को (अयमानम्) प्राप्त होनेवाले को और (पशुमत्) पशुओं से युक्त (श्रवः) अन्न वा श्रवण को (च) भी (अच्छ) उत्तम प्रकार (यूथम्, च) तथा समूह के पीछे कोशते रोते हैं (उत, स्म) वही तो शीघ्र नष्ट होता है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो राजा प्रजापालन के विना कर लेता है, जिस राजा की प्रजा को दुष्ट जन दुःख देते हैं और जो राजा आप नीच कर्म करनेवाला, वाज पक्षी के सदृश हिंसक, पशु के सदृश मूर्ख और जिस राजा की सेना चोर के सदृश वर्त्तमान है, उसका शीघ्र विनाश होता है, यह निश्चय है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

क्षितयो भरेषु यमेनं राजानं वस्त्रमथिं तायुं नाऽनु क्रोशन्ति जसुरिं श्येनं न नीचायमानं पशुमच्छ्रवश्चाऽच्छ यूथञ्चाऽनु क्रोशन्त्युत स स्म सद्यो विनश्यति ॥५॥

Word-Meaning: - (उत) (स्म) (एनम्) (वस्त्रमथिम्) यो वस्त्राणि मथ्नाति तम् (न) इव (तायुम्) तस्करम् (अनु) (क्रोशन्ति) रुदन्ति (क्षितयः) मनुष्याः (भरेषु) सङ्ग्रामेषु (नीचा) नीचानि कर्म्माणि (अयमानम्) प्राप्नुवन्तम् (जसुरिम्) प्रयतमानम् (न) इव (श्येनम्) पक्षिविशेषम् (श्रवः) अन्नं श्रवणं वा (च) (अच्छ) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (पशुमत्) पशवो विद्यन्ते यस्मिंस्तत् (च) (यूथम्) समूहम् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यो राजा प्रजापालनेन विना करं हरति यस्य प्रजाभ्यो दुष्टा दुःखं ददति यः स्वयं नीचकर्मा श्येनवद्धिंस्रः पशुवन्मूर्खो यस्य सेना च चोरवद्वर्त्तते तस्य सद्यो विनाशो भवतीति निश्चयः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो राजा प्रजापालन न करता कर घेतो, ज्याच्या प्रजेला दुष्ट लोक त्रास देतात व जो स्वतः नीच कर्म करणारा असतो, श्येन पक्ष्याप्रमाणे हिंसक असून पशूप्रमाणे मूर्ख असतो. ज्याची सेना चोराप्रमाणे असते त्याचा तात्काळ विनाश होतो हे निश्चित. ॥ ५ ॥