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अ॒न॒श्वो जा॒तो अ॑नभी॒शुरु॒क्थ्यो॒३॒॑ रथ॑स्त्रिच॒क्रः परि॑ वर्तते॒ रजः॑। म॒हत्तद्वो॑ दे॒व्य॑स्य प्र॒वाच॑नं॒ द्यामृ॑भवः पृथि॒वीं यच्च॒ पुष्य॑थ ॥१॥

English Transliteration

anaśvo jāto anabhīśur ukthyo rathas tricakraḥ pari vartate rajaḥ | mahat tad vo devyasya pravācanaṁ dyām ṛbhavaḥ pṛthivīṁ yac ca puṣyatha ||

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Pad Path

अ॒न॒श्वः। जा॒तः। अ॒न॒भी॒शुः। उ॒क्थ्यः॑। रथः॑। त्रि॒ऽच॒क्रः। परि॑। व॒र्त॒ते॒। रजः॑। म॒हत्। तत्। वः॒। दे॒व्य॑स्य। प्र॒ऽवाच॑नम्। द्याम्। ऋ॒भ॒वः॒। पृ॒थि॒वीम्। यत्। च॒। पुष्य॑थ ॥१॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:36» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले छत्तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में शिल्पविद्या के विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (वः) आप लोगों के लिये (अनश्वः) घोड़ों से रहित (अनभीशुः) जिसने किसी का दिया नहीं लिया वह (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य (त्रिचक्रः) तीन पहियों से युक्त (रथः) वाहनविशेष (जातः) उत्पन्न हुआ (यत्) जो (महत्) बड़े (रजः) लोकसमूह के (परि) सब ओर (वर्तते) वर्त्तमान है (तत्) वह (देव्यस्य) विद्वानों में उत्पन्न कर्म का (प्रवाचनम्) उपदेश सब ओर वर्त्तमान है, उससे (द्याम्) प्रकाश (च) और (पृथिवीम्) अन्तरिक्ष वा भूमि को आप लोग (पुष्यथ) पुष्ट करो ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम लोग अनेक प्रकार के अनेक कलाचक्रों तथा पशु घोड़ा के वाहन से रहित, अग्नि और जल से चलाये गये विमान आदि वाहनों को बना पृथिवी, जलों और अन्तरिक्ष में जा आकर और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर पूर्ण सुखवाले होओ ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पविद्याविषयमाह ॥

Anvay:

हे ऋभवो ! वोऽनश्वोऽनभीशुरुक्थ्यस्त्रिचक्रो रथो जातः सन् यन्महद्रजः परिवर्त्तते तद्देव्यस्य प्रवाचनं परिवर्त्तते तेन द्यां पृथिवीं च यूयं पुष्यथ ॥१॥

Word-Meaning: - (अनश्वः) अविद्यमाना अश्वा यस्मिन्त्सः (जातः) उत्पन्नः (अनभीशुः) अप्रतिग्रहः (उक्थ्यः) प्रशंसितुमर्हः (रथः) यानविशेषः (त्रिचक्रः) त्रीणि चक्राण्यस्मिन् सः (परि) सर्वतः (वर्त्तते) (रजः) लोकसमूहः (महत्) (तत्) (वः) युष्मभ्यम् (देव्यस्य) देवेषु विद्वत्सु भवस्य (प्रवाचनम्) उपदेशनम् (द्याम्) प्रकाशम् (ऋभवः) मेधाविनः (पृथिवीम्) अन्तरिक्षं भूमिं वा (यत्) (च) (पुष्यथ) ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयमनेकविधान्यनेककलाचक्राणि पश्वश्ववहनरहितान्यग्न्युदकवाहितानि विमानादीनि यानानि निर्माय पृथिव्यामप्स्वन्तरिक्षे च गत्वाऽऽगत्यैश्वर्य्यं प्राप्य पुष्टसुखा भवत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विपश्चिताच्या (विद्वानाच्या) गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! तुम्ही अनेक प्रकारची अनेक कलायंत्रे असलेली, पशू, घोडा इत्यादी वाहनरहित, तसेच अग्नी व जल यांनी चालविलेली विमान इत्यादी याने तयार करून पृथ्वी, जल व अंतरिक्षात जाऊन येऊन ऐश्वर्य प्राप्त करून पूर्ण सुखी व्हा. ॥ १ ॥