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यत्तृ॒तीयं॒ सव॑नं रत्न॒धेय॒मकृ॑णुध्वं स्वप॒स्या सु॑हस्ताः। तदृ॑भवः॒ परि॑षिक्तं व ए॒तत्सं मदे॑भिरिन्द्रि॒येभिः॑ पिबध्वम् ॥९॥

English Transliteration

yat tṛtīyaṁ savanaṁ ratnadheyam akṛṇudhvaṁ svapasyā suhastāḥ | tad ṛbhavaḥ pariṣiktaṁ va etat sam madebhir indriyebhiḥ pibadhvam ||

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Pad Path

यत्। तृ॒तीय॑म्। सव॑नम्। र॒त्न॒ऽधेय॑म्। अकृ॑णुध्वम्। सु॒ऽअ॒प॒स्या। सु॒ऽह॒स्ताः॒। तत्। ऋ॒भ॒वः॒। परि॑ऽसिक्तम्। वः॒। ए॒तत्। सम्। मदे॑भिः। इ॒न्द्रि॒येभिः॑। पि॒ब॒ध्व॒म् ॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:35» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सुहस्ताः) सुन्दर धर्म्मसम्बन्धी कर्म्म करनेवाले हाथों से युक्त (ऋभवः) बुद्धिमानो ! आप (यत्) जो (वः) आप लोगों के लिये (एतत्) यह (परिषिक्तम्) सब प्रकार श्रेष्ठ पदार्थों से संयुक्त किया हुआ (तत्) उसको (मदेभिः) आनन्दों (इन्द्रियेभिः) चक्षुरादि इन्द्रियों और (स्वपस्या) उत्तम धर्मसम्बन्धी कर्म की इच्छा से (सम्, पिबध्वम्) पान करो और (रत्नधेयम्) जिसमें रत्न धरे जाते हैं उस (तृतीयम्) तीसरे अर्थात् अड़तालीसवें वर्ष पर्य्यन्त सेवित ब्रह्मचर्य्य और (सवनम्) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों के प्राप्त करनेवाले कर्म को (अकृणुध्वम्) करिये ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! तुम प्रथम अर्थात् युवावस्था में विद्या का अभ्यास, द्वितीय अर्थात् मध्यम अवस्था में गृहाश्रम और तृतीय में न्याय आदि कर्मों का अनुष्ठान करके पूर्ण ऐश्वर्य्य को प्राप्त होओ ॥९॥ इस सूक्त में विद्वानों का कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥९॥ यह पैंतीसवाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सुहस्ता ऋभवो ! यूयं यद्व एतत्परिषिक्तं तन्मदेभिरिन्द्रियेभिः स्वपस्या सम्पिबध्वं तद्रत्नधेयं तृतीयं सवनमकृणुध्वम् ॥९॥

Word-Meaning: - (यत्) (तृतीयम्) अष्टाचत्वारिंशद्वर्षपरिमितसेवितं ब्रह्मचर्य्यम् (सवनम्) सकलैश्वर्य्यप्रापकम् (रत्नधेयम्) रत्नानि धीयन्ते यस्मिँस्तत् (अकृणुध्वम्) (स्वपस्या) सुष्ठु धर्म्यकर्मेच्छया (सुहस्ताः) शोभना धर्म्यकर्मकरा हस्ता येषान्ते (तत्) (ऋभवः) (परिषिक्तम्) परितः सर्वतः श्रेष्ठपदार्थैः संयोजितम् (वः) युष्मभ्यम् (एतत्) (सम्) (मदेभिः) आनन्दैः (इन्द्रियेभिः) (पिबध्वम्) ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यूयं प्रथमे वयसि विद्याभ्यासं द्वितीये गृहाश्रमं तृतीये न्यायादिकर्मानुष्ठानं च कृत्वा पूर्णमैश्वर्य्यं प्राप्नुत ॥९॥ अत्र विद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥९॥ इति पञ्चत्रिंशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! प्रथम युवावस्थेत विद्येचा अभ्यास, द्वितीय अर्थात मध्यम अवस्थेत गृहस्थाश्रम, तृतीयमध्ये न्याय इत्यादी कर्मांचे अनुष्ठान करून पूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करा. ॥ ९ ॥