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आ न॑पातः शवसो यात॒नोपे॒मं य॒ज्ञं नम॑सा हू॒यमा॑नाः। स॒जोष॑सः सूरयो॒ यस्य॑ च॒ स्थ मध्वः॑ पात रत्न॒धा इन्द्र॑वन्तः ॥६॥

English Transliteration

ā napātaḥ śavaso yātanopemaṁ yajñaṁ namasā hūyamānāḥ | sajoṣasaḥ sūrayo yasya ca stha madhvaḥ pāta ratnadhā indravantaḥ ||

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Pad Path

आ। न॒पा॒तः॒। श॒व॒सः॒। या॒त॒न॒। उप॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नम॑सा। हू॒यमा॑नाः। स॒ऽजोष॑सः। सू॒र॒यः॒। यस्य॑। च॒। स्थ। मध्वः॑। पा॒त॒। र॒त्न॒ऽधाः। इन्द्र॑ऽवन्तः ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:34» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हूयमानाः) ईर्ष्या करते हुए (शवसः) बलयुक्त (नपातः) नहीं गिरना जिनके विद्यमान (सजोषसः) तुल्य प्रीति के सेवनकर्त्ता (रत्नधाः) धनों को धारण करनेवाले (इन्द्रवन्तः) ऐश्वर्य्य से युक्त (सूरयः) विद्वान् जनो ! आप लोग (नमसा) सत्कार से (इमम्) इस (यज्ञम्) विद्यावृद्धि करनेवाले यज्ञ को (उप, आ, यातन) प्राप्त हूजिये (च) और (यस्य) जिसके (मध्वः) मधुरगुणयुक्त पदार्थ को प्राप्त (स्थ) होओ उसकी नित्य (पात) रक्षा कीजिये ॥६॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि परस्पर मित्रता कर शरीर और आत्मा का बल बढ़ाय, विद्याधनरूप ऐश्वर्य्य को प्राप्त हों, उसकी उत्तम प्रकार रक्षा कर और बढ़ाय के इससे सब को सुखी करें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे हूयमानाः शवसो नपातः सजोषसो रत्नधा इन्द्रवन्तः सूरयो ! यूयन्नमसेमं यज्ञमुपायातन यस्य च मध्वः प्राप्ताः स्थ तन्नित्यं पात ॥६॥

Word-Meaning: - (आ) (नपातः) न विद्यते पात् पतनं येषान्ते (शवसः) बलवन्तः (यातन) प्राप्नुत (उप) (इमम्) (यज्ञम्) विद्यावृद्धिकरं व्यवहारम् (नमसा) सत्कारेण (हूयमानाः) स्पर्द्धमानाः (सजोषसः) समानप्रीतिसेवनाः (सूरयः) विद्वांसः (यस्य) (च) (स्थ) सन्तु (मध्वः) मधुरगुणयुक्तस्य (पात) रक्षत (रत्नधाः) ये रत्नानि धनानि दधति ते (इन्द्रवन्तः) ऐश्वर्य्यवन्तः ॥६॥
Connotation: - मनुष्यैः परस्परम्मित्रतां विधाय शरीरात्मबलं वर्द्धयित्वा विद्याधनैश्वर्य्यं प्राप्य संरक्ष्य वर्द्धयित्वाऽनेन सर्वे सुखिनः कर्त्तव्याः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी परस्पर मैत्री करून शरीर व आत्मा यांचे बल वाढवून विद्याधनरूपी ऐश्वर्य प्राप्त करावे. त्याचे उत्तम प्रकारे रक्षण करून सर्वांना सुखी करावे. ॥ ६ ॥