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सं यत्त॑ इन्द्र म॒न्यवः॒ सं च॒क्राणि॑ दधन्वि॒रे। अध॒ त्वे अध॒ सूर्ये॑ ॥६॥

English Transliteration

saṁ yat ta indra manyavaḥ saṁ cakrāṇi dadhanvire | adha tve adha sūrye ||

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Pad Path

सम्। यत्। ते॒। इ॒न्द्र॒। म॒न्यवः॑। सम्। च॒क्राणि॑। द॒ध॒न्वि॒रे। अध॑। त्वे इति॑। अध॑। सूर्ये॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:31» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) जीव (ते) तेरे (यत्) जो (मन्यवः) क्रोध आदि व्यवहार (चक्राणि) चक्र के सदृश वर्तमान कर्म्मों को (सम्, दधन्विरे) धारण करते हैं (अध) अनन्तर (त्वे) आप में धन को धारण करते (अध) इसके अनन्तर वे (सूर्य्य) सूर्य्य में प्रकाश के सदृश प्रताप को (सम्) धारण करते हैं ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्य ! जो तू दुष्ट आचरण करनेवाले पर क्रोध और श्रेष्ठ आचरण करनेवाले के प्रति हर्ष करे तो सूर्य्य के सदृश प्रतापी होवे ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! ते यन्मन्यवश्चक्राणि संदधन्विरेऽध त्वे धनं दधत्यध ते सूर्य्ये प्रकाश इव प्रतापं संदधन्विरे ॥६॥

Word-Meaning: - (सम्) (यत्) ये (ते) तव (इन्द्र) जीव (मन्यवः) क्रोधादयो व्यवहाराः (सम्) (चक्राणि) चक्रवद्वर्त्तमानानि कर्माणि (दधन्विरे) धरन्ति (अध) (त्वे) त्वयि (अध) (सूर्ये) सवितरि ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्य ! यदि त्वं दुष्टाचारं प्रति क्रोधं श्रेष्ठाचारं प्रत्याह्लादं कुर्यास्तर्हि त्वं सूर्य्य इव प्रतापी भवेः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसा! तू दुष्ट आचरण करणाऱ्यावर क्रोध व श्रेष्ठ आचरण करणाऱ्यावर हर्ष प्रकट केलास, तर सूर्यासारखा प्रतापी होशील. ॥ ६ ॥