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यत्रो॒त मर्त्या॑य॒ कमरि॑णा इन्द्र॒ सूर्य॑म्। प्रावः॒ शची॑भि॒रेत॑शम् ॥६॥

English Transliteration

yatrota martyāya kam ariṇā indra sūryam | prāvaḥ śacībhir etaśam ||

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Pad Path

यत्र॑। उ॒त। मर्त्या॑य। कम्। अरि॑णाः। इ॒न्द्र॒। सूर्य॑म्। प्र। आ॒वः॒। शची॑भिः। एत॑शम् ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:30» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सुख के देनेवाले आप (सूर्य्यम्) सूर्य्य को वायु के सदृश (शचीभिः) बुद्धियों वा कर्म्मों से (एतशम्) विद्या को प्राप्त घोड़े के सदृश बलवान् की (प्र, आवः,) रक्षा करें (यत्र) जिस राज्य में (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (कम्) सुख (अरिणाः) देवें वहाँ (उत) भी दुष्टों को दुःख देवें ॥६॥
Connotation: - जहाँ राजा श्रेष्ठों का सत्कार और दुष्टों को दण्ड देकर विद्या और विनय को बढ़ाता है, वहाँ सम्पूर्ण प्रजा स्वस्थ होती है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं सूर्य्यं वायुरिव शचीभिरेतशं प्रावः। यत्र मर्त्याय कमरिणास्तत्रोत दुष्टान् दुःखं दद्याः ॥६॥

Word-Meaning: - (यत्र) यस्मिन् राज्ये (उत) अपि (मर्त्याय) मनुष्याय (कम्) सुखम् (अरिणाः) प्रदद्याः (इन्द्र) सुखप्रदातः (सूर्य्यम्) सवितारं वायुरिव (प्र) (आवः) रक्षेः (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्म्मभिर्वा (एतशम्) प्राप्तविद्यमश्ववद् बलिष्ठम् ॥६॥
Connotation: - यत्र राजा श्रेष्ठान्त्सत्कृत्य दुष्टान् दण्डयित्वा विद्याविनयौ वर्द्धयति तत्र सर्वाः प्रजाः स्वस्था भवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा राजा श्रेष्ठांचा सत्कार व दुष्टांना दंड देऊन विद्या व विनयाची वाढ करतो तेव्हा संपूर्ण प्रजा तृप्त असते. ॥ ६ ॥