अपो॒षा अन॑सः सर॒त्संपि॑ष्टा॒दह॑ बि॒भ्युषी॑। नि यत्सीं॑ शि॒श्नथ॒द्वृषा॑ ॥१०॥
apoṣā anasaḥ sarat sampiṣṭād aha bibhyuṣī | ni yat sīṁ śiśnathad vṛṣā ||
अप॑। उ॒षाः। अन॑सः। स॒र॒त्। सम्ऽपिष्टा॑त्। अह॑। बि॒भ्युषी॑। नि। यत्। सी॒म्। शि॒श्नथ॑त्। वृषा॑ ॥१०॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
यो वृषा यथा बिभ्युषी उषा अनसोऽग्रमिव सम्पिष्टादहाप सरद् यद् या सीं नि शिश्नथत् तथाचरेत् स सूर्य्य इव तेजस्वी भवेत् ॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
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