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ए॒ता विश्वा॑ वि॒दुषे॒ तुभ्यं॑ वेधो नी॒थान्य॑ग्ने नि॒ण्या वचां॑सि। नि॒वच॑ना क॒वये॒ काव्या॒न्यशं॑सिषं म॒तिभि॒र्विप्र॑ उ॒क्थैः ॥१६॥

English Transliteration

etā viśvā viduṣe tubhyaṁ vedho nīthāny agne niṇyā vacāṁsi | nivacanā kavaye kāvyāny aśaṁsiṣam matibhir vipra ukthaiḥ ||

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Pad Path

ए॒ता। विश्वा॑। वि॒दुषे॑। तुभ्य॑म्। वे॒धः॒। नी॒थानि॑। अ॒ग्ने॒। नि॒ण्या। वचां॑सि। नि॒ऽवच॑ना। क॒वये॑। काव्या॑नि। अशं॑सिषम्। म॒तिऽभिः॑। विप्रः॑। उ॒क्थैः॥१६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:16 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वेधः) बुद्धिमान् (अग्ने) राजन् ! (विप्रः) मेधावी जन मैं (उक्थैः) प्रशंसा करने योग्य (मतिभिः) विद्वानों के साथ जो (काव्यानि) कवियों ने रचे शास्त्र उनकी (अशंसिषम्) प्रशंसा करता हूँ और उन (विश्वा) सम्पूर्ण (एता) इन (निण्या) निर्णय किये गये (निवचना) अत्यन्त अर्थों को कहनेवाले (वचांसि) वचनों को (विदुषे) विद्वान् (कवये) उत्तम बुद्धिवाले (तुभ्यम्) आपके लिये (नीथानि) प्राप्त किये गये प्रशंसूँ अर्थात् वह आपको प्राप्त हुए ऐसी प्रशंसा करूँ ॥१६॥
Connotation: - वही निश्चित प्रशंसा जानने योग्य है कि जो धार्मिक विद्वानों से की जाय। अध्यापक और उपदेशक जनों को चाहिये कि पढ़ने और उपदेश देनेवालों को सदा ही सत्यवादी और विद्वान् करें ॥१६॥ इस सूक्त में अग्नि, राजा और प्रज्जदिकों के कृत्य और गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥१६॥ यह तीसरा सूक्त और बाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजाविषयमाह ॥

Anvay:

हे वेधोऽग्ने ! विप्रोऽहमुक्थैर्मतिभिः सह यानि काव्यान्यशंसिषं तानि विश्वैता निण्या निवचना वचांसि विदुषे कवये तुभ्यं नीथानि प्रशंसेयम् ॥१६॥

Word-Meaning: - (एता) एतानि (विश्वा) सर्वाणि (विदुषे) (तुभ्यम्) (वेधः) मेधाविन् (नीथानि) प्रापितानि (अग्ने) राजन् (निण्या) निर्णीतानि (वचांसि) वचनानि (निवचना) नितरामुच्यन्तेऽर्था यैस्तानि (कवये) विक्रान्तप्रज्ञाय (काव्यानि) कविभिर्निर्मितानि (अशंसिषम्) प्रशंसेयम् (मतिभिः) विद्वद्भिस्सह (विप्रः) मेधावी (उक्थैः) प्रशंसितुमर्हैः ॥१६॥
Connotation: - सैव निश्चिता प्रशंसा वेदितव्या या धार्मिकैर्विद्वद्भिः क्रियेत, अध्यापकोपदेशकैरध्येतार उपदेश्याश्च सदैव सत्यवादिनो विद्वांसो विधातव्या इति ॥१६॥ अत्राग्निराजप्रजादिकृत्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥१६॥ इति तृतीयं सूक्तं द्वाविंशो वर्गश्च समाप्तः॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - धार्मिक विद्वानांनी केलेली प्रशंसा निश्चित जाणण्यायोग्य असते. अध्यापक व उपदेशक लोकांनी अध्ययन व उपदेश घेणाऱ्यांना सदैव सत्यवादी विद्वान करावे. ॥ १६ ॥