ए॒ता विश्वा॑ वि॒दुषे॒ तुभ्यं॑ वेधो नी॒थान्य॑ग्ने नि॒ण्या वचां॑सि। नि॒वच॑ना क॒वये॒ काव्या॒न्यशं॑सिषं म॒तिभि॒र्विप्र॑ उ॒क्थैः ॥१६॥
etā viśvā viduṣe tubhyaṁ vedho nīthāny agne niṇyā vacāṁsi | nivacanā kavaye kāvyāny aśaṁsiṣam matibhir vipra ukthaiḥ ||
ए॒ता। विश्वा॑। वि॒दुषे॑। तुभ्य॑म्। वे॒धः॒। नी॒थानि॑। अ॒ग्ने॒। नि॒ण्या। वचां॑सि। नि॒ऽवच॑ना। क॒वये॑। काव्या॑नि। अशं॑सिषम्। म॒तिऽभिः॑। विप्रः॑। उ॒क्थैः॥१६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ प्रजाविषयमाह ॥
हे वेधोऽग्ने ! विप्रोऽहमुक्थैर्मतिभिः सह यानि काव्यान्यशंसिषं तानि विश्वैता निण्या निवचना वचांसि विदुषे कवये तुभ्यं नीथानि प्रशंसेयम् ॥१६॥
MATA SAVITA JOSHI
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