Go To Mantra

ऋ॒तेनाद्रिं॒ व्य॑सन्भि॒दन्तः॒ समङ्गि॑रसो नवन्त॒ गोभिः॑। शु॒नं नरः॒ परि॑ षदन्नु॒षास॑मा॒विः स्व॑रभवज्जा॒ते अ॒ग्नौ ॥११॥

English Transliteration

ṛtenādriṁ vy asan bhidantaḥ sam aṅgiraso navanta gobhiḥ | śunaṁ naraḥ pari ṣadann uṣāsam āviḥ svar abhavaj jāte agnau ||

Mantra Audio
Pad Path

ऋ॒तेन॑। अद्रि॑म्। वि। अ॒स॒न्। भि॒दन्तः॑। सम्। अङ्गि॑रसः। न॒व॒न्त॒। गोभिः॑। शु॒नम्। नरः॑। परि॑। स॒द॒न्। उ॒षस॑म्। आ॒विः। स्वः॑। अ॒भ॒व॒त्। जा॒ते। अ॒ग्नौ॒॥११॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:3» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:11


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजा आदि क्षत्रियों के लिये उपदेश अगले मन्त्र में करते हैं।

Word-Meaning: - हे (नरः) नायक होते हुए विद्वान् लोगो ! जैसे (गोभिः) किरणों के सदृश वाणियों से (अङ्गिरसः) पवन (ऋतेन) जल के सहित वर्त्तमान (अद्रिम्) मेघ के (सम्, भिदन्तः) अच्छे प्रकार टुकड़े करते हुए (वि, असन्) विविध प्रकार से फेंकते हैं (उषसम्) और प्रातःकाल को (परि, सदन्) प्राप्त होते हैं वा (जाते) उत्पन्न हुए (अग्नौ) अग्नि में (स्वः) सूर्य्य (आविः) प्रकट (अभवत्) होता है, वैसे (शुनम्) सुख की (नवन्त) प्रशंसा करो ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा आदि वीर क्षत्रिय जैसे पवन से युक्त बिजुलियाँ मेघ को इधर-उधर चलाय और तोड़ पृथिवी पर गिरा के सब को सुख देती हैं और दूसरी बिजुली का विलोडन करके सूर्य्य को उत्पन्न करती हैं, वैसे ही दुष्ट पुरुषों का नाश और न्याय का प्रकाश, बुद्धि का विलोडन और विद्या को उत्पन्न करके सूर्य्य के सदृश प्रकाशमान हुए अतुल सुख को प्राप्त होओ ॥११॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजादिक्षत्रियेभ्य उपदेशमाह ॥

Anvay:

हे नरो विद्वांसो ! यथा गोभिरङ्गिरस ऋतेन सहितमद्रिं सम्भिदन्तो व्यसन्नुषसं परिषदञ्जातेऽग्नौ स्वराविरभवत् तथा शुनं नवन्त ॥११॥

Word-Meaning: - (ऋतेन) जलेन सह वर्त्तमानम् (अद्रिम्) मेघम् (वि) (असन्) प्रक्षिपन्ति (भिदन्तः) विदारयन्तः (सम्) (अङ्गिरसः) वायवः (नवन्त) प्रशंसत (गोभिः) किरणैरिव वाग्भिः (शुनम्) सुखम् (नरः) नेतारः सन्तः (परि) (सदन्) परिषीदन्ति (उषसम्) प्रभातम् (आविः) प्राकट्ये (स्वः) सूर्य्यः (अभवत्) भवति (जाते) उत्पन्ने (अग्नौ) ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजादयो वीरा क्षत्रिया यथा वायुयुक्ता विद्युतो मेघं व्यस्तं कृत्वा विदीर्य्य भूमौ निपात्य सर्वान् सुखयन्ति विद्युतं विलोड्य सूर्य्यं जनयन्ति तथैव दुष्टान् विनाश्य न्यायं प्रकाश्य प्रज्ञां विलोड्य विद्याञ्जनयित्वा भानुरिव प्रकाशमानाः सन्तोऽतुलं सुखमाप्नुवन्तु ॥११॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वायूयुक्त विद्युत मेघांना इकडे तिकडे फिरवून त्यांना तोडून फोडून पृथ्वीवर पाडून सर्वांना सुख देते व विद्युत विलोडन करून सूर्याला उत्पन्न करते, तसेच राजे इत्यादी वीर क्षत्रियांनी दुष्ट पुरुषांचा नाश, न्यायाचा प्रकाश, प्रज्ञामंथन व विद्या उत्पन्न करून सूर्याप्रमाणे प्रकाशमान होऊन अतुल सुख प्राप्त करावे. ॥ ११ ॥