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अह॒न्निन्द्रो॒ अद॑हद॒ग्निरि॑न्दो पु॒रा दस्यू॑न्म॒ध्यन्दि॑नाद॒भीके॑। दु॒र्गे दु॑रो॒णे क्रत्वा॒ न या॒तां पु॒रू स॒हस्रा॒ शर्वा॒ नि ब॑र्हीत् ॥३॥

English Transliteration

ahann indro adahad agnir indo purā dasyūn madhyaṁdinād abhīke | durge duroṇe kratvā na yātām purū sahasrā śarvā ni barhīt ||

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Pad Path

अह॑न्। इन्द्रः॑। अद॑हत्। अ॒ग्निः। इ॒न्दो॒ इति॑। पु॒रा। दस्यू॑न्। म॒ध्यन्दि॑नात्। अ॒भीके॑। दुः॒ऽगे। दु॒रो॒णे। क्रत्वा॑। न। या॒ताम्। पु॒रु। स॒हस्रा॑। शर्वा॑। नि। ब॒र्ही॒त् ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:28» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्दो) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त प्रजाजन जो (इन्द्रः) सूर्य्य के सदृश राजा (मध्यन्दिनात्) मध्य दिन में वर्त्तमान ताप से (दस्यून्) बड़े साहस करनेवालों को (अहन्) नाश करता है (अग्निः) अग्नि के सदृश (अभीके) समीप में दुष्टों को (अदहत्) जलाता है और (पुरा) पहिले से (दुर्गे) राजगढ़ (दुरोणे) गृह में (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म के (न) सदृश (पुरू) बहुत (शर्वा) सम्पूर्ण हिंसनों और (सहस्रा) हजारों को (नि, बर्हीत्) नाश करे वह और आप इस प्रकार से सुख को (याताम्) प्राप्त होओ ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मध्याह्न में सूर्य्य सब को तपाता है, वैसे ही न्यायकारी राजा दुष्ट चोरादिकों को दुःख देता है और अग्नि के सदृश भस्मीभूत करके सम्पूर्ण हिंसा दूर करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्दो ! ये इन्द्र इव मध्यन्दिनाद् दस्यूनहन्नग्निरिवाभीके दुष्टानदहत् पुरा दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न पुरू शर्वा सहस्रा नि बर्हीत् स त्वं चैवं सुखं याताम् ॥३॥

Word-Meaning: - (अहन्) हन्ति (इन्द्रः) सूर्य्य इव राजा (अदहत्) दहति भस्मीकरोति (अग्निः) पावक इव (इन्दो) परमैश्वर्य्ययुक्त प्रजाजन (पुरा) प्रथमतः (दस्यून्) महासाहसिकान् (मध्यन्दिनात्) मध्यन्दिने वर्त्तमानात् तापात् (अभीके) समीपे (दुर्गे) प्रकोटे (दुरोणे) गृहे (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (न) इव (याताम्) गच्छताम् (पुरू) बहूनि (सहस्रा) सहस्राणि (शर्वा) सर्वाणि हिंसनानि (नि) (बर्हीत्) ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मध्याह्ने सूर्य्यस्सर्वान् प्रतापयति तथैव न्यायशीलो राजा दुष्टाञ्चोरादीन् दुःखयति, अग्निवद्भस्मीभूतान् कृत्वा सर्वा हिंसा निवारयेत् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा मध्यान्हीचा सूर्य सर्वांना ताप देतो तसा न्यायी राजा दुष्ट चोरांना दुःख देतो व अग्नीप्रमाणे भस्मीभूत करून संपूर्ण हिंसा दूर करतो. ॥ ३ ॥