त्वा यु॒जा तव॒ तत्सो॑म स॒ख्य इन्द्रो॑ अ॒पो मन॑वे स॒स्रुत॑स्कः। अह॒न्नहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒नपा॑वृणो॒दपि॑हितेव॒ खानि॑ ॥१॥
tvā yujā tava tat soma sakhya indro apo manave sasrutas kaḥ | ahann ahim ariṇāt sapta sindhūn apāvṛṇod apihiteva khāni ||
त्वा। यु॒जा। तव॑। तत्। सो॒म॒। स॒ख्ये। इन्द्रः॑। अ॒पः। मन॑वे। स॒ऽस्रु॑तः। क॒रिति॑ कः। अह॑न्। अहि॑म्। अरि॑णात्। स॒प्त। सिन्धू॑न्। अप॑। अ॒वृ॒णो॒त्। अपि॑हिताऽइव। खानि॑ ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब पाँच ऋचावाले अट्ठाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य सूर्य्यदृष्टान्त से राजप्रजागुणों का उपदेश करते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथेन्द्रपदवाच्यसूर्य्यदृष्टान्तेन राजप्रजागुणानाह ॥
हे सोम ! तव सख्ये यथेन्द्रो मनवे सस्रुतः कोऽहिमहन् सप्त सिन्धूनरिणात् खान्यपिहितेवापोऽपावृणोत् तथा तत्त्वा युजा पुरुषेण कर्म्म कर्त्तुं शक्यम् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात राजा व प्रजा इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.