गर्भे॒ नु सन्नन्वे॑षामवेदम॒हं दे॒वानां॒ जनि॑मानि॒ विश्वा॑। श॒तं मा॒ पुर॒ आय॑सीररक्ष॒न्नध॑ श्ये॒नो ज॒वसा॒ निर॑दीयम् ॥१॥
garbhe nu sann anv eṣām avedam ahaṁ devānāṁ janimāni viśvā | śatam mā pura āyasīr arakṣann adha śyeno javasā nir adīyam ||
गर्भे॑। नु। सन्। अनु॑। ए॒षा॒म्। अ॒वे॒द॒म्। अ॒हम्। दे॒वाना॑म्। जनि॑मानि। विश्वा॑। श॒तम्। मा॒। पुरः॑। आय॑सीः। अ॒र॒क्ष॒न्। अध॑। श्ये॒नः। ज॒वसा॑। निः। अ॒दी॒य॒म् ॥१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब पाँच ऋचावाले सत्ताईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में जीव के गुणों को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ जीवगुणानाह ॥
हे मनुष्या ! यथाऽहं गर्भे सन्नेषां देवानां विश्वा जनिमान्यन्ववेदं यं मा आयसीः शतं पुरोऽरक्षन्नध सोऽहं श्येन इवाऽस्माच्छरीराज्जवसा नु निरदीयम् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात जीवाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.