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तमिन्नरो॒ वि ह्व॑यन्ते समी॒के रि॑रि॒क्वांस॑स्त॒न्वः॑ कृण्वत॒ त्राम्। मि॒थो यत्त्या॒गमु॒भया॑सो॒ अग्म॒न्नर॑स्तो॒कस्य॒ तन॑यस्य सा॒तौ ॥३॥

English Transliteration

tam in naro vi hvayante samīke ririkvāṁsas tanvaḥ kṛṇvata trām | mitho yat tyāgam ubhayāso agman naras tokasya tanayasya sātau ||

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Pad Path

तम्। इत्। नरः॑। वि। ह्व॒य॒न्ते॒। स॒म्ऽई॒के। रि॒रि॒क्वांसः॑। त॒न्वः॑। कृ॒ण्व॒त॒। त्राम्। मि॒थः। यत्। त्या॒गम्। उ॒भया॑सः। अग्म॑न्। नरः॑। तो॒कस्य॑। तन॑यस्य। सा॒तौ ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:24» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (रिरिक्वांसः) रेचन कराते हुए (नरः) नायक लोगो ! (समीके) उत्तम प्रकार प्राप्त सङ्ग्राम में (यत्) जिसकी विद्वान् लोग (वि) विशेष करके (ह्वयन्ते) स्पर्द्धा करते हैं (तम्) उसको (इत्) ही (तन्वः) शरीर का (त्राम्) रक्षक (कृण्वत) करिये और हे (नरः) राज्य के नायको ! (तोकस्य) शीघ्र उत्पन्न हुए और (तनयस्य) कुमारावस्था को प्राप्त बालक के (सातौ) उत्तम प्रकार विभाग में (उभयासः) दोनों ओर वर्त्तमान और दुःख का (त्यागम्) त्याग तथा (मिथः) परस्पर शत्रुओं को नष्ट करते हुए जन (अग्मन्) प्राप्त हों, उनका सेवन करो ॥३॥
Connotation: - हे सेना के जनो ! जो भृत्यों का रक्षक, उत्साहयुक्त और शूरवीर होवे, उसका सत्कार करके और जो सङ्ग्राम को छोड़के भागते हैं, उनका नहीं सत्कार करके और अत्यन्त दण्ड देकर विजय को प्राप्त होओ ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे रिरिक्वांसो नरः ! समीके यद्यं विद्वांसो वि ह्वयन्ते तमिदेव तन्वस्त्रां कृण्वत। हे नरस्तोकस्य तनयस्य साता उभयासो दुःखस्य त्यागङ्कुर्वन्तो मिथः शत्रून् घ्नन्तोऽग्मँस्तान् सेवध्वम् ॥३॥

Word-Meaning: - (तम्) (इत्) एव (नरः) नायकाः (वि) विशेषेण (ह्वयन्ते) स्पर्द्धन्ते (समीके) सम्यक् प्राप्ते सङ्ग्रामे। समीक इति सङ्ग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (रिरिक्वांसः) रेचनङ्कारयन्तः (तन्वः) शरीरस्य (कृण्वत) कुरुत (त्राम्) रक्षकम् (मिथः) अन्योऽन्यम् (यत्) यम् (त्यागम्) (उभयासः) उभयत्र वर्त्तमानाः (अग्मन्) प्राप्नुत (नरः) राज्यस्य नेतारः (तोकस्य) सद्यो जातस्याऽपत्यस्य (तनयस्य) कुमाराऽवस्थां प्राप्तस्य (सातौ) संविभक्ते ॥३॥
Connotation: - हे सेनाजना ! यो भृत्यानां रक्षक उत्साहक शूरवीरो भवेत्तं सत्कृत्य ये सङ्ग्रामङ्कृत्वा पलायन्ते तानसत्कृत्य भृशं दण्डयित्वा विजयं प्राप्नुत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे सेनेतील लोकांनो! जो नोकरांचा रक्षक, उत्साही व शूरवीर असेल त्याचा सत्कार करा. जे युद्धातून पलायन करतात त्यांचा धिक्कार करा व दंड द्या आणि विजय प्राप्त करा. ॥ ३ ॥