द्रुहं॒ जिघां॑सन्ध्व॒रस॑मनि॒न्द्रां तेति॑क्ते ति॒ग्मा तु॒जसे॒ अनी॑का। ऋ॒णा चि॒द्यत्र॑ ऋण॒या न॑ उ॒ग्रो दू॒रे अज्ञा॑ता उ॒षसो॑ बबा॒धे ॥७॥
druhaṁ jighāṁsan dhvarasam anindrāṁ tetikte tigmā tujase anīkā | ṛṇā cid yatra ṛṇayā na ugro dūre ajñātā uṣaso babādhe ||
दुह॑म्। जिघां॑सन्। ध्व॒रस॑म्। अ॒नि॒न्द्राम्। तेति॑क्ते। ति॒ग्मा। तु॒जसे। अनी॑का। ऋ॒णा। चि॒त्। यत्र॑। ऋ॒ण॒ऽयाः। नः॒। उ॒ग्रः। दू॒रे। अज्ञा॑ताः। उ॒षसः॑। ब॒बा॒धे ॥७॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब शत्रुनिवारण के अनुकूल सेना की उन्नति के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ शत्रुनिवारणसेनोन्नतिविषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यत्र नो य उग्रो दूरेऽज्ञाताः शत्रुसेना उषसस्तमः सूर्य्य इव बबाध ऋणयाश्चित् तुजसे तिग्मा ऋणा अनीका तेतिक्ते द्रुहं ध्वरसं जिघांसन्ननिन्द्रां बबाधे ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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