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नू ष्टु॒त इ॑न्द्र॒ नू गृ॑णा॒न इषं॑ जरि॒त्रे न॒द्यो॒३॒॑ न पी॑पेः। अका॑रि ते हरिवो॒ ब्रह्म॒ नव्यं॑ धि॒या स्या॑म र॒थ्यः॑ सदा॒साः ॥११॥

English Transliteration

nū ṣṭuta indra nū gṛṇāna iṣaṁ jaritre nadyo na pīpeḥ | akāri te harivo brahma navyaṁ dhiyā syāma rathyaḥ sadāsāḥ ||

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Pad Path

नु। स्तु॒तः। इ॒न्द्र॒। नु। गृ॒णा॒नः। इष॑म्। ज॒रि॒त्रे। न॒द्यः॑। न। पी॒पेरिति॑ पीपेः। अका॑रि। ते॒। ह॒रि॒ऽवः॒। ब्रह्म॑। नव्य॑म्। धि॒या। स्या॒म॒। र॒थ्यः॑। स॒दाऽसाः ॥११॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:23» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:6 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रशंसापरत्व से पूर्व विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) बहुत धनयुक्त (इन्द्र) सत्य ऐश्वर्य्य के देनेवाले जिस (ते) आपका (नव्यम्) नवीन (ब्रह्म) बड़ा विद्यारूप धन जिसने (अकारि) किया उस (जरित्रे) विद्या की इच्छा करनेवाले के लिये (स्तुतः) सत्य आचरण से प्रशंसित (नद्यः) नदियों के (न) सदृश (इषम्) विज्ञान को देकर (नु) शीघ्र (पीपेः) पालन करे और सत्य का (गृणानः) प्रचार करता हुआ धर्म्म को प्राप्त कराय के (नु) निश्चय पालन करो और जैसे हम लोग (धिया) बुद्धि से और पुरुषार्थ से (रथ्यः) रथयुक्त और (सदासाः) दासों के सहित वर्त्तमान (स्याम) होवें, वैसे आप हूजिये ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो जैसे आप लोगों में धर्म्मयुक्त नीति का स्थापन करें, उनकी सेवा करके मित्र हो के सम्पूर्ण विद्याओं को जानिये ॥११॥ इस सूक्त में प्रश्न उत्तर मैत्री शत्रुओं का निवारण सेना की उन्नति और सत्य आचरण की उत्तमता का वर्णन करने से इस के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह तेईसवाँ सूक्त और दशमा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रशंसापरत्वेन पूर्वविषयमाह ॥

Anvay:

हे हरिव इन्द्र ! यस्य ते नव्यम्ब्रह्म येनाऽकारि तस्मै जरित्रे स्तुतो नद्यो नेषं दत्वा नु पीपेः सत्यं गृणानो धर्म्मं प्रापय्य नु पीपेः यथा वयं धिया पुरुषार्थेन रथ्यः सदासाः स्याम तथा त्वं भव ॥११॥

Word-Meaning: - (नु) (स्तुतः) सत्याचारेण प्रशंसितः (इन्द्र) सत्यैश्वर्य्यप्रद (नु) (गृणानः) सत्याचारं स्तुवन् (इषम्) विज्ञानम् (जरित्रे) विद्यामिच्छुकाय (नद्यः) (न) इव (पीपेः) (अकारि) (ते) (हरिवः) (ब्रह्म) बृहद्विद्याधनम् (नव्यम्) (धिया) प्रज्ञया (स्याम) (रथ्यः) (सदासाः) ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! ये यथा युष्मासु धर्म्यां नीतिं स्थापयेयुस्तेषां सेवां कृत्वा सखायो भूत्वा सर्वा विद्या विजानीतेति ॥११॥ अत्र प्रश्नोत्तरमैत्रीशत्रुनिवारणसेनोन्नतिसत्याचारोत्कर्षवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति त्रयोविंशतितमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जे तुमच्यामध्ये धर्मयुक्त नीती प्रस्थापित करतात त्यांची सेवा करून मित्र बनून संपूर्ण विद्या जाणा. ॥ ११ ॥