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अ॒स्मे वर्षि॑ष्ठा कृणुहि॒ ज्येष्ठा॑ नृ॒म्णानि॑ स॒त्रा स॑हुरे॒ सहां॑सि। अ॒स्मभ्यं॑ वृ॒त्रा सु॒हना॑नि रन्धि ज॒हि वध॑र्व॒नुषो॒ मर्त्य॑स्य ॥९॥

English Transliteration

asme varṣiṣṭhā kṛṇuhi jyeṣṭhā nṛmṇāni satrā sahure sahāṁsi | asmabhyaṁ vṛtrā suhanāni randhi jahi vadhar vanuṣo martyasya ||

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Pad Path

अ॒स्मे इति॑। वर्षि॑ष्ठा। कृ॒णु॒हि॒। ज्येष्ठा॑। नृ॒म्णानि॑। स॒त्रा। स॒हु॒रे॒। सहां॑सि। अ॒स्मभ्य॑म्। वृ॒त्रा। सु॒ऽहना॑नि। र॒न्धि॒। ज॒हि। वधः॑। व॒नुषः॑। मर्त्य॑स्य ॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:22» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहुरे) सहनशील राजन् ! जो आपके (सत्रा) सत्य (वर्षिष्ठा) अत्यन्त वृद्ध (ज्येष्ठा) प्रशंसा करने योग्य (नृम्णानि) धन (सहांसि) और सहन वर्त्तमान हैं उनको (अस्मे) हम लोगों में (कृणुहि) करो (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये दुःख देनेवाले (वनुषः) सेवा करते हुए (मर्त्त्यस्य) मनुष्य के (वधः) मारने के साधन को (जहि) दूर फेंको और (सुहनानि) उत्तम प्रकार नाश करने योग्य (वृत्रा) मेघ बादलों के समान शत्रुओं की सेनाओं का (रन्धि) नाश कीजिये ॥९॥
Connotation: - हे राजा आदि जनो ! आप लोग मिल के प्रजा को पीड़ा देनेवाले के बल का नाश करो और जो आप लोगों के उत्तम वस्तु उनको हम लोगों में धारण कीजिये और जो हम लोगों के उत्तम रत्न उनको आप लोग धरें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे सहुरे राजन् ! यानि ते सत्रा वर्षिष्ठा ज्येष्ठा नृम्णानि सहांसि वर्त्तन्ते तान्यस्मे कृणुहि। अस्मभ्यं दुःखप्रदस्य वनुषो मर्त्त्यस्य वधर्जहि सुहनानि वृत्रेव शत्रुसैन्यानि रन्धि ॥९॥

Word-Meaning: - (अस्मे) अस्मासु (वर्षिष्ठा) अतिशयेन वृद्धानि (कृणुहि) कुरु (ज्येष्ठा) प्रशस्यानि (नृम्णानि) धनानि (सत्रा) सत्यानि (सहुरे) सहनशीलेन्द्र (सहांसि) सहनानि (अस्मभ्यम्) (वृत्रा) वृत्राणि मेघघना इव शत्रुसैन्यानि (सुहनानि) सुष्ठु हन्तुं योग्यानि (रन्धि) नाशय (जहि) दूरे प्रक्षिप (वधः) वधसाधनम् (वनुषः) सेवमानस्य (मर्त्त्यस्य) ॥९॥
Connotation: - हे राजादयो जना ! यूयम्मिलित्वा प्रजापीडकस्य बलं घ्नत यानि स्वेषामुत्तमानि वस्तूनि तान्यस्मासु दधत यान्यस्माकमुत्तमानि रत्नानि तानि युष्मासु वयं धरेम ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा इत्यादी लोकांनो! तुम्ही प्रजेला त्रास देणाऱ्याच्या बलाचा नाश करा व उत्तम वस्तू आम्हाला द्या आणि आमची उत्तम रत्ने तुम्ही धारण करा. ॥ ९ ॥