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पि॒पी॒ळे अं॒शुर्मद्यो॒ न सिन्धु॒रा त्वा॒ शमी॑ शशमा॒नस्य॑ श॒क्तिः। अ॒स्म॒द्र्य॑क्शुशुचा॒नस्य॑ यम्या आ॒शुर्न र॒श्मिं तु॒व्योज॑सं॒ गोः ॥८॥

English Transliteration

pipīḻe aṁśur madyo na sindhur ā tvā śamī śaśamānasya śaktiḥ | asmadryak chuśucānasya yamyā āśur na raśmiṁ tuvyojasaṁ goḥ ||

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Pad Path

पि॒पी॒ळे। अं॒शुः। मद्यः॑। न। सिन्धुः॑। आ। त्वा॒। शमी॑। श॒श॒मा॒नस्य॑। श॒क्तिः। अ॒स्म॒द्र्य॑क्। शु॒शु॒चा॒नस्य॑। य॒म्याः॒। आ॒शुः। न। र॒श्मिम्। तु॒वि॒॑ऽओज॑सम्। गोः ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:22» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजनीति के अध्ययन से अध्यापकविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! (मद्यः) आनन्दित करानेवाली (सिन्धुः) नदी जैसे (न) वैसे जिन आपको (अंशुः) पदार्थ पहुँचनेवाला (आ, पिपीळे) पीड़ा देता है उन (शशमानस्य) अधर्म्म का उल्लङ्घन करने (शुशुचानस्य) अत्यन्त शोधने और (गोः) स्तुति करनेवाले आपके (आशुः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) सदृश (यम्याः) रात्रियाँ (रश्मिम्) सूर्य्य के प्रकाश को जैसे वैसे जो (अस्मद्र्यक्) हम को प्राप्त होनेवाली (शक्तिः) सामर्थ्य हम लोगों का पालन करे वह और (शमी) उत्तम कर्म्म (तुव्योजसम्) बहुत बल और पराक्रमयुक्त (त्वा) आपको प्राप्त होवे ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे प्रजाजनो ! जो लोग अपने राजा को पीड़ा देवें, वे आप लोगों से नाश करने योग्य हैं और जैसे रात्रियाँ किरणों को नष्ट करती हैं, वैसे ही धार्म्मिक राजा के बल को प्राप्त होकर शत्रु दूर होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजनीत्यध्ययनेनाध्यापकविषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! मद्यस्सिन्धुर्न यन्त्वामंशुरापिपीळे तस्य शशमानस्य शुशुचानस्य गोस्त आशुर्न यम्या रश्मिमिव याऽस्मद्र्यक् शक्तिरस्मान् पालयेत् सा शमी च तुव्योजसन्त्वाऽऽप्नोतु ॥८॥

Word-Meaning: - (पिपीळे) पीडयति (अंशुः) प्रापकः (मद्यः) आनन्दयिता (न) इव (सिन्धुः) नदीव (आ) (त्वा) त्वाम् (शमी) उत्तमं कर्म्म (शशमानस्य) अधर्म्ममुल्लङ्घतः (शक्तिः) सामर्थ्यम् (अस्मद्र्यक्) याऽस्मानञ्चति प्राप्नोति (शुशुचानस्य) भृशं शोधकस्य (यम्याः) रात्रयः। यम्येति रात्रिनामसु पठितम्। (निघं०१.७) (आशुः) शीघ्रगाम्यश्वः (न) इव (रश्मिम्) सूर्य्यप्रकाशम् (तुव्योजसम्) बहुबलपराक्रमम् (गोः) स्तावकस्य। गौरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) ॥८॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे प्रजाजना ! ये स्वं राजानं पीडयेयुस्ते युष्माभिर्हन्तव्याः। यथा रात्रयो रश्मिं प्रानश्यन्ति तथैव धार्मिकस्य राज्ञो बलं प्राप्य शत्रवो निवर्त्तन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे प्रजाजनांनो ! जे लोक आपल्या राजाला त्रास देतात त्यांचा तुम्ही नाश केला पाहिजे व रात्र जशी किरणांना नष्ट करते तसेच धार्मिक राजाचे बल प्राप्त झाल्याने शत्रू दूर होतात. ॥ ८ ॥