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ता तू ते॑ स॒त्या तु॑विनृम्ण॒ विश्वा॒ प्र धे॒नवः॑ सिस्रते॒ वृष्ण॒ ऊध्नः॑। अधा॑ ह॒ त्वद्वृ॑षमणो भिया॒नाः प्रसिन्ध॑वो॒ जव॑सा चक्रमन्त ॥६॥

English Transliteration

tā tū te satyā tuvinṛmṇa viśvā pra dhenavaḥ sisrate vṛṣṇa ūdhnaḥ | adhā ha tvad vṛṣamaṇo bhiyānāḥ pra sindhavo javasā cakramanta ||

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Pad Path

ता। तु। ते॒। स॒त्या। तु॒वि॒ऽनृ॒म्ण॒। विश्वा॑। प्र। धे॒नवः॑। सि॒स्र॒ते॒। वृष्णः॑। ऊध्नः॑। अध॑। ह॒। त्वत्। वृ॒ष॒ऽम॒नः॒। भि॒या॒नाः। प्र। सिन्ध॑वः। जव॑सा। च॒क्र॒म॒न्त॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:22» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (तुविनृम्ण) बहुत धनवाले और (वृषमणः) बलयुक्त पुरुष के मन के सदृश मन से युक्त राजन् ! जैसे (सिन्धवः) नदियाँ (जवसा) वेग से (चक्रमन्त) चलती हैं, वैसे (त्वत्) आपके समीप से (भियानाः) भय को प्राप्त शत्रु लोग दूर भागते हैं (अधा) इसके अनन्तर जो (ते) आपके (विश्वा) सम्पूर्ण (सत्या) श्रेष्ठ पुरुषों में साधु कर्म्म अर्थात् उत्तम आचरण और (धेनवः) वाणियाँ (वृष्णः) ब्रह्मचर्य्य आदि से बलिष्ठ (ऊध्नः) विस्तीर्ण बलवालों को (प्र, सिस्रते) अच्छे प्रकार प्राप्त होती हैं (ता) उनको (तू) फिर (ह) निश्चय से आप वेग से (प्र) अत्यन्त सिद्ध करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिस राजा की सफल वाणी और धर्मयुक्त कर्म्म वर्तमान है, उससे गौओं से बछड़ों के सदृश प्रजा तृप्त होती है और उससे दुष्ट डरते हैं और यश विस्तृत होता है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

Anvay:

हे तुविनृम्ण वृषमण इन्द्र ! यथा सिन्धवो जवसा चक्रमन्त तथा त्वद्भियानाः शत्रवोः दूरं पलायन्तेऽधा या ते विश्वा सत्या आचरणानि धेनवो वाचो वृष्ण ऊध्नः प्र सिस्रते ता तू ह त्वं जवसा प्र साध्नुहि ॥६॥

Word-Meaning: - (ता) तानि (तू) पुनः। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (ते) तव (सत्या) सत्सु साधूनि कर्म्माणि (तुविनृम्ण) बहुधन (विश्वा) सर्वाणि (प्र) (धेनवः) वाचः (सिस्रते) सरन्ति प्राप्नुवन्ति (वृष्णः) ब्रह्मचर्य्यादिना बलिष्ठान् (ऊध्नः) विस्तीर्णबलान् (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ह) खलु (त्वत्) तव सकाशात् (वृषमणः) वृषस्य बलयुक्तस्य मन इव मनो यस्य तत्सम्बुद्धौ (भियानाः) भयम्प्राप्ताः (प्र) (सिन्धवः) नद्यः (जवसा) वेगेन (चक्रमन्त) क्रमन्ते गच्छन्ति ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्य राज्ञोऽमोघा वाग्धर्म्यं कर्म्म वर्त्तते तस्माद्धेनुभ्यो वत्सा इव प्रजास्तृप्ता भवन्ति तस्माद् दुष्टा बिभ्यति यशश्च प्रथते ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या राजाची अमोघ वाणी व धर्मयुक्त कार्य विद्यमान आहे व गाईमुळे जशी वासरे तृप्त होतात तशी प्रजा तृप्त होते आणि दुष्ट शत्रू त्याला घाबरतात व सर्वत्र त्याचे यश पसरते. ॥ ६ ॥