वृषा॒ वृष॑न्धिं॒ चतु॑रश्रि॒मस्य॑न्नु॒ग्रो बा॒हुभ्यां॒ नृत॑मः॒ शची॑वान्। श्रि॒ये परु॑ष्णीमु॒षमा॑ण॒ ऊर्णां॒ यस्याः॒ पर्वा॑णि स॒ख्याय॑ वि॒व्ये ॥२॥
vṛṣā vṛṣandhiṁ caturaśrim asyann ugro bāhubhyāṁ nṛtamaḥ śacīvān | śriye paruṣṇīm uṣamāṇa ūrṇāṁ yasyāḥ parvāṇi sakhyāya vivye ||
वृषा॑। वृष॑न्धिम्। चतुः॑ऽअश्रिम्। अस्य॑न्। उ॒ग्रः। बा॒हुभ्या॑म्। नृऽत॑मः। शची॑ऽवान्। श्रि॒ये। परु॑ष्णीम्। उ॒षमा॑णः। ऊ॒र्णा॑म्। यस्याः॑। पर्वा॑णि। स॒ख्याय॑। वि॒व्ये ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यो वृषा वृषन्धिं चतुरश्रिं बाहुभ्यामस्यन्नुग्रो नृतमश्शचीवान् यस्याः पर्वाणि श्रिये प्रभवन्ति तां परुष्णीमूर्णामुषमाणः सन्त्सख्याय विव्ये स एवाऽस्माकं राजा भवितुमर्हेत् ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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