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ईक्षे॑ रा॒यः क्षय॑स्य चर्षणी॒नामु॒त व्र॒जम॑पव॒र्तासि॒ गोना॑म्। शि॒क्षा॒न॒रः स॑मि॒थेषु॑ प्र॒हावा॒न्वस्वो॑ रा॒शिम॑भिने॒तासि॒ भूरि॑म् ॥८॥

English Transliteration

īkṣe rāyaḥ kṣayasya carṣaṇīnām uta vrajam apavartāsi gonām | śikṣānaraḥ samitheṣu prahāvān vasvo rāśim abhinetāsi bhūrim ||

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Pad Path

ईक्षे॑। रा॒यः। क्षय॑स्य। च॒र्ष॒णी॒नाम्। उ॒त। व्र॒जम्। अ॒प॒ऽव॒र्ता। अ॒सि॒। गोना॑म्। शि॒क्षा॒ऽन॒रः। स॒म्ऽइ॒थेषु॑। प्र॒हाऽवा॑न्। वस्वः॑। रा॒शिम्। अ॒भि॒ऽने॒ता। अ॒सि॒। भूरि॑म् ॥८॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:20» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जिस कारण (शिक्षानरः) विद्या के देने से नायक आप (प्रहावान्) विजय को प्राप्त तथा (समिथेषु) संग्रामों में (वस्वः) धन के (भूरिम्) बहुत प्रकार के (राशिम्) समूह को (अभिनेता) सम्मुख पहुँचानेवाले (असि) हो और (चर्षणीनाम्) मनुष्यों के (रायः) धन (क्षयस्य) निवास (उत) और (गोनाम्) स्तुति करनेवालों के सम्बन्धी (व्रजम्) शस्त्र-अस्त्रों को (अपवर्त्ता) दूर करनेवाले (असि) हो उनको मैं राजा होने को (ईक्षे) देखता हूँ ॥८॥
Connotation: - वही राजा दिशाओं में यशस्वी होवे कि जो मनुष्यों को विद्या, धन और उत्तम वास देकर संग्रामादिकों में निरन्तर सब की रक्षा करे ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यतः शिक्षानरस्त्वं प्रहावान् समिथेषु वस्वो भूरिं राशिमभिनेताऽसि चर्षणीनां रायः क्षयस्योत गोनाञ्च व्रजमपवर्त्ताऽसि तमहं राजानमीक्षे ॥८॥

Word-Meaning: - (ईक्षे) पश्यामि (रायः) धनस्य (क्षयस्य) निवासस्य (चर्षणीनाम्) मनुष्याणाम् (उत) अपि (व्रजम्) शस्त्राऽस्त्रम् (अपवर्त्ता) अपवारयिता। अत्र तृन् प्रत्ययः। (असि) (गोनाम्) स्तोतॄणाम् (शिक्षानरः) विद्योपादानेन नेता (समिथेषु) संग्रामेषु (प्रहावान्) विजयं प्राप्तवान् (वस्वः) धनस्य (राशिम्) समूहम् (अभिनेता) आभिमुख्यं प्रापयिता। अत्रापि तृन्। (असि) (भूरिम्) बहुविधम् ॥८॥
Connotation: - स एव राजा दिक्षु कीर्तिमान् भवेद्यो मनुष्येभ्यो विद्यां धनं सुवासं च दत्वा संग्रामादिषु सततं सर्वान् रक्षेत् ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो माणसांना विद्या, धन व उत्तम निवास देऊन युद्ध इत्यादींमध्ये निरन्तर सर्वांचे रक्षण करतो, तोच राजा सगळीकडे यशस्वी होतो. ॥ ८ ॥