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वि यो र॑र॒प्श ऋषि॑भि॒र्नवे॑भिर्वृ॒क्षो न प॒क्वः सृण्यो॒ न जेता॑। मर्यो॒ न योषा॑म॒भि मन्य॑मा॒नोऽच्छा॑ विवक्मि पुरुहू॒तमिन्द्र॑म् ॥५॥

English Transliteration

vi yo rarapśa ṛṣibhir navebhir vṛkṣo na pakvaḥ sṛṇyo na jetā | maryo na yoṣām abhi manyamāno cchā vivakmi puruhūtam indram ||

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Pad Path

वि। यः। र॒र॒प्शे। ऋषि॑ऽभिः। नवेभिः॑। वृ॒क्षः। न। प॒क्वः। सृण्यः॑। न। जेता॑। मर्यः॑। न। योषा॑म्। अ॒भि। मन्य॑मानः। अच्छ॑। वि॒व॒क्मि॒। पु॒रु॒ऽहू॒तम्। इन्द्र॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:20» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (नवेभिः) नवीन अध्ययनकर्त्ता (ऋषिभिः) वेदार्थ के जाननेवालों से (वि, ररप्शे) स्तुति किये जाते हो (वृक्षः) वृक्ष के (न) सदृश (पक्वः) पके हुए फल आदि युक्त (सृण्यः) बल को प्राप्त उत्तम प्रकार शिक्षित सेना के (न) सदृश (जेता) जीतनेवाला (मर्य्यः) मनुष्य (योषाम्) स्त्री के (न) तुल्य प्रजा को (अभि, मन्यमानः) प्रत्यक्ष जानता हुआ वर्तमान है, उस (पुरुहूतम्) बहुतों से स्तुति किये गये (इन्द्रम्) प्रशंसित गुणों के धारण करनेवाले को जैसे मैं (अच्छा) उत्तम प्रकार (विवक्मि) विशेष करके उपदेश करता हूँ, वैसे इसको आप लोग भी उपदेश दीजिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो यथार्थवक्ता जनों में प्रशंसा को प्राप्त, वृक्ष के सदृश दृढ़ उत्साहरूप फलवान्, अकेला सेना के सदृश जीतनेवाला, पतिव्रता स्त्री के सदृश प्रजा में प्रसन्न होवे, उस प्रशंसित को राजा आप लोग मानो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो नवेभिर्ऋषिभिर्वि ररप्शे वृक्षो न पक्वः सृण्यो न जेता मर्य्यो योषां न प्रजामभिमन्यमानोऽस्ति तं पुरुहूतमिन्द्रं यथाऽहमच्छा विवक्मि तथैनं यूयमप्युपदिशत ॥५॥

Word-Meaning: - (वि) (यः) (ररप्शे) स्तूयते। अत्र रभधातोर्लिटि सस्य शः। (ऋषिभिः) वेदार्थविद्भिः (नवेभिः) नूतनाऽध्ययनैः (वृक्षः) (न) इव (पक्वः) परिपक्वफलादिः (सृण्यः) प्राप्तबलाः सुशिक्षिताः सेनाः (न) इव (जेता) जेतुं शीलः (मर्यः) मनुष्यः (न) इव (योषाम्) स्त्रियम् (अभि) आभिमुख्ये (मन्यमानः) जानन् (अच्छा) संहितायामिति दीर्घः। (विवक्मि) विशेषेणोपदिशामि (पुरुहूतम्) बहुभिः स्तुतम् (इन्द्रम्) प्रशंसितगुणधरम् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ये आप्तेषु प्राप्तप्रशंसो वृक्ष इव दृढोत्साहफल एकाकी सेनावद्विजयमानः पतिव्रता भार्यावत् प्रजाप्रीतो भवेत् तं प्रशंसितं राजानं यूयम्मन्यध्वम् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो आप्त लोकात प्रशंसित, वृक्षाप्रमाणे दृढ उत्साही फळ देणारा, एकटा सेनेसारखा जिंकणारा, पतिव्रता स्त्रीप्रमाणे प्रजेत प्रसन्न असतो त्या प्रशंसिताला तुम्ही राजा माना. ॥ ५ ॥