Go To Mantra

इ॒मं य॒ज्ञं त्वम॒स्माक॑मिन्द्र पु॒रो दध॑त्सनिष्यसि॒ क्रतुं॑ नः। श्व॒ध्नीव॑ वज्रिन्त्स॒नये॒ धना॑नां॒ त्वया॑ व॒यम॒र्य आ॒जिं ज॑येम ॥३॥

English Transliteration

imaṁ yajñaṁ tvam asmākam indra puro dadhat saniṣyasi kratuṁ naḥ | śvaghnīva vajrin sanaye dhanānāṁ tvayā vayam arya ājiṁ jayema ||

Mantra Audio
Pad Path

इ॒मम्। य॒ज्ञम्। त्वम्। अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। पु॒रः। दध॑त्। स॒नि॒ष्य॒सि॒। क्रतु॑म्। नः॒। श्व॒घ्नीऽइ॑व। व॒ज्रि॒न्। स॒नये॑। धना॑नाम्। त्वया॑। व॒यम्। अ॒र्यः। आ॒जिम्। ज॒ये॒म॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:20» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:3» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अमात्य के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥३॥

Word-Meaning: - हे (वज्रिन्) शस्त्र और अस्त्र के प्रयोग जानने और (इन्द्र) बहुत धन के देनेवाले सेनापति ! जिससे कि (अर्य्यः) स्वामी (त्वम्) आप (अस्माकम्) हम लोगों के (इमम्) इस वर्त्तमान (यज्ञम्) राजधर्म के निर्वाहरूप यज्ञ को और (पुरः) नगरों को (दधत्) धारण करते हुए (नः) हम लोगों की (क्रतुम्) बुद्धि का (सनिष्यसि) सेवन करोगे इससे (त्वया) आपके साथ (वयम्) हम लोग (धनानाम्) धनों के (सनये) सम्यक् विभाग करने के लिये (श्वघ्नीव) भेड़िनी के सदृश (आजिम्) सङ्ग्राम को (जयेम) जीतें ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जहाँ राजा मन्त्रियों और मन्त्री राजा को प्रसन्न करके और विभाग कर दे और ग्रहण करके प्रीति से बलिष्ठ हुए ही ऐश्वर्य्य के लिये जैसे भेड़िनी बकरी को मारे, वैसे शत्रुओं का नाश करके विजय से भूषित होते हैं, वहीं सम्पूर्ण सुख होते हैं ॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथामात्यगुणानाह ॥

Anvay:

हे वज्रिन्निन्द्र ! यतोऽर्य्यस्त्वमस्माकमिमं यज्ञं पुरश्च दधत् सन्नोऽस्माकं क्रतुं सनिष्यसि तस्मात्त्वया सह वयं धनानां सनये श्वघ्नीवाऽऽजिञ्जयेम ॥३॥

Word-Meaning: - (इमम्) वर्त्तमानम् (यज्ञम्) राजधर्म्मानुष्ठानाख्यम् (त्वम्) (अस्माकम्) (इन्द्र) पुष्कलधनप्रद सेनापते ! (पुरः) नगराणि (दधत्) धरन्त्सन् (सनिष्यसि) सम्भजिष्यसि (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (नः) अस्माकम् (श्वघ्नीव) वृकीव (वज्रिन्) शस्त्राऽस्त्रवित् (सनये) संविभागाय (धनानाम्) (त्वया) (वयम्) (अर्य्यः) स्वामी (आजिम्) सङ्ग्रामम्। आजिरिति सङ्ग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (जयेम) ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यत्र राजाऽमात्यानमात्या राजानञ्च हर्षयित्वा सम्भज्य दत्त्वा गृहीत्वा प्रीत्या बलिष्ठाः सन्तो ह्यैश्वर्य्याय यथा वृक्यजां हन्यात्तथा शत्रून् हत्वा विजयेन भूषिता भवन्ति तत्रैव सर्वाणि सुखानि भवन्ति ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जेथे राजा मंत्र्यांना व मंत्री राजाला प्रसन्न करून (धनाची) विभागणी करून देतात, घेतात व बलवान बनतात व लांडगी जशी बकरीला मारते तसे शत्रूंचा नाश करून विजय मिळवितात, तेच संपूर्ण सुखी होतात. ॥ ३ ॥