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यस्तुभ्य॑मग्ने अ॒मृता॑य॒ दाश॒द्दुव॒स्त्वे कृ॒णव॑ते य॒तस्रु॑क्। न स रा॒या श॑शमा॒नो वि यो॑ष॒न्नैन॒मंहः॒ परि॑ वरदघा॒योः ॥९॥

English Transliteration

yas tubhyam agne amṛtāya dāśad duvas tve kṛṇavate yatasruk | na sa rāyā śaśamāno vi yoṣan nainam aṁhaḥ pari varad aghāyoḥ ||

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Pad Path

यः। तुभ्य॑म्। अ॒ग्ने॒। अ॒मृता॑य। दाश॑त्। दुवः॑। त्वे इति॑। कृ॒णव॑ते। य॒तऽस्रु॑क्। न। सः। रा॒या। श॒श॒मा॒नः। वि। यो॒ष॒त्। न। ए॒न॒म्। अंहः॑। परि॑। व॒र॒त्। अ॒घ॒ऽयोः॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:17» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! (यः) जो (तुभ्यम्) आपके लिये (अमृताय) मोक्ष के अर्थ (दाशत्) देवे (त्वे) वा आप में (दुवः) सेवा को (कृणवते) करता है, उसके लिये आप भी विज्ञान दीजिये। जो पुरुष (राया) धन से (शशमानः) उछलता और (यतस्रुक्) उद्यत है क्रिया के साधन जिसके ऐसा होता हुआ (एनम्) इसको (अंहः) दुःख देनेवाले को (न) नहीं (वि, योषत्) त्याग करे (सः) वह (अघायोः) पापी की हिंसा को (न) नहीं (परि, वरत्) सब ओर से स्वीकार करे ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! आप लोगों में जैसे जो लोग प्रीति करते हैं, वैसे ही उनमें आप लोग स्नेह करें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! यस्तुभ्यममृताय दाशत् त्वे दुवः कृणवते तस्मै त्वमपि विज्ञानं देहि। यो राया शशमानो यतस्रुक् सन्नेनमंहो न वियोषत् सोऽघायोरंहो न परि वरत् ॥९॥

Word-Meaning: - (यः) (तुभ्यम्) (अग्ने) विद्वन् (अमृताय) मोक्षाय (दाशत्) दद्यात् (दुवः) परिचरणम् (त्वे) त्वयि (कृणवते) कुर्वते (यतस्रुक्) उद्यतक्रियासाधनः (न) (सः) (राया) धनेन (शशमानः) प्लवमानः (वि, योषत्) वियुज्येत (न) (एनम्) (अंहः) (परि) (वरत्) वृणुयात् (अघायोः) पापिनः ॥९॥
Connotation: - हे मनुष्या ! युष्मासु ये यथा प्रीतिं कुर्वन्ति तथैव तेषु भवन्तः स्नेहं कुर्वन्तु ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! तुम्हाला जे प्रेम करतात तसेच तुम्ही त्यांना द्या. ॥ ९ ॥