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यस्य॒ त्वम॑ग्ने अध्व॒रं जुजो॑षो दे॒वो मर्त॑स्य॒ सुधि॑तं॒ ररा॑णः। प्री॒तेद॑स॒द्धोत्रा॒ सा य॑वि॒ष्ठासा॑म॒ यस्य॑ विध॒तो वृ॒धासः॑ ॥१०॥

English Transliteration

yasya tvam agne adhvaraṁ jujoṣo devo martasya sudhitaṁ rarāṇaḥ | prīted asad dhotrā sā yaviṣṭhāsāma yasya vidhato vṛdhāsaḥ ||

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Pad Path

यस्य॑। त्वम्। अ॒ग्ने॒। अ॒ध्व॒रम्। जुजो॑षः। दे॒वः। मर्त॑स्य। सुऽधि॑तम्। ररा॑णः। प्री॒ता। इत्। अ॒स॒त्। होत्रा॑। सा। य॒वि॒ष्ठ॒। असा॑म। यस्य॑। वि॒ध॒तः। वृ॒धासः॑॥१०॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:2» Mantra:10 | Ashtak:3» Adhyay:4» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:4» Anuvak:1» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) अति जवान (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान विद्वान् पुरुष ! (यस्य) जिसके (अध्वरम्) हिंसारहित व्यवहार का (त्वम्) आप (जुजोषः) अत्यन्त सेवन करते हैं (देवः) उत्तम सुख के देनेवाले हुए (यस्य) जिस (विधतः) विधान करनेवाले (मर्त्तस्य) मनुष्य के (सुधितम्) उत्तम हित के (रराणः) अत्यन्त देनेवाले हों उसकी (सा) वह (होत्रा) ग्रहण करने योग्य क्रिया (प्रीता) प्रसन्न (इत्) ही अर्थात् सफल ही मेरे में (असत्) होवे (वृधासः) वृद्धि करनेवाले होते हुए हम लोग (असाम) प्रसिद्ध होवें और वह हम लोगों को वैसे ही सुख देवे ॥१०॥
Connotation: - जो जिसके सुख को साधे उस पुरुष को चाहिये कि उस उपकार करनेवाले पुरुष को भी सुख देवें ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे यविष्ठाऽग्ने ! यस्याऽध्वरं त्वं जुजोषो देवस्सन् यस्य विधतो मर्त्तस्य सुधितं रराणः सा होत्रा प्रीतेद् मय्यसद् वृधासः सन्तो वयमसाम सोऽस्मांस्तथैव सुखयेत् ॥१०॥

Word-Meaning: - (यस्य) (त्वम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान विद्वन् (अध्वरम्) अहिंसनीयव्यवहारम् (जुजोषः) भृशं सेवसे (देवः) दिव्यसुखदाता (मर्त्तस्य) मनुष्यस्य (सुधितम्) सुहितम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन हस्य धः। (रराणः) भृशं दाता (प्रीता) प्रसन्ना (इत्) (असत्) भवेत् (होत्रा) ग्राह्या (सा) (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (असाम) भवेम (यस्य) (विधतः) विधानं कुर्वतः (वृधासः) वर्धकास्सन्तः ॥१०॥
Connotation: - यो यस्य सुखं साध्नुयात्तेनापि स सुखेनाऽलङ्कर्त्तव्यः ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो ज्याला सुख देतो त्या पुरुषाने उपकार करणाऱ्या पुरुषालाही सुख द्यावे ॥ १० ॥