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व॒म्रीभिः॑ पु॒त्रम॒ग्रुवो॑ अदा॒नं नि॒वेश॑नाद्धरिव॒ आ ज॑भर्थ। व्य१॒॑न्धो अ॑ख्य॒दहि॑माददा॒नो निर्भू॑दुख॒च्छित्सम॑रन्त॒ पर्व॑ ॥९॥

English Transliteration

vamrībhiḥ putram agruvo adānaṁ niveśanād dhariva ā jabhartha | vy andho akhyad ahim ādadāno nir bhūd ukhacchit sam aranta parva ||

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Pad Path

व॒म्रीभिः॑। पु॒त्रम्। अ॒ग्रुवः॑। अ॒दा॒नम्। नि॒ऽवेश॑नात्। ह॒रि॒ऽवः॒। आ। ज॒भ॒र्थ॒। वि। अ॒न्धः। अ॒ख्य॒त्। अहि॑म्। आ॒ऽद॒दा॒नः। निः। भू॒त्। उ॒ख॒ऽछित्। सम्। अ॒र॒न्त॒। पर्व॑ ॥९॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:19» Mantra:9 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (हरिवः) प्रशंसित घोड़ों से युक्त राजन् ! जैसे (निवेशनात्) अपने स्थान से (वम्रीभिः) उगली हुई पहाड़ियों से (अग्रुवः) नदियाँ तट आदि का हरण करती हैं, वैसे ही (अदानम्) दान नहीं करनेवाले (पुत्रम्) पुत्र को (आ, जभर्थ) हरते हो और जैसे (अन्धः) अन्धकार करनेवाले (अहिम्) मेघ को (आददानः) ग्रहण करता हुआ (वि, अख्यत्) विख्यात करता है और (उखच्छित्) गमन का काटने अर्थात् मार्ग छिन्न-भिन्न करनेवाला (निः, भूत्) निरन्तर होता (पर्व) और पालनेवाले को (सम् अरन्त) अच्छे प्रकार रमाता है, वैसे ही नहीं दान करनेवाला गति पाता है ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! अपना पुत्र भी बुरे लक्षणोंवाला हो तो नहीं अधिकार देने योग्य है और वर्षाकालों में नदियाँ बढ़ती हैं, वैसे ही प्रजाओं की वृद्धि करनी चाहिये ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे हरिवो राजन् ! यथा निवेशनाद् वम्रीभिरग्रुवस्तटादिकं हरन्ति तथैवाऽदानं पुत्रमाजभर्थ। यथान्धोऽहिमाददानो व्यख्यदुखच्छिन्निर्भूत् पर्व समरन्त तथैवाऽदाता गतिं लभते ॥९॥

Word-Meaning: - (वम्रीभिः) उद्गीर्णाभिः (पुत्रम्) (अग्रुवः) नद्यः (अदानम्) दानस्याऽकर्त्तारम् (निवेशनात्) स्वस्थानात् (हरिवः) प्रशस्ताऽश्वयुक्त (आ) (जभर्थ) हरसि (वि) (अन्धः) अन्धकारकृत् (अख्यत्) ख्याति (अहिम्) मेघम् (आददानः) गृह्णन् (निः) (भूत्) भवति (उखच्छित्) य उखङ्गमनञ्छिनत्ति सः (सम्) (अरन्त) रमते (पर्व) पालकम् ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन्त्स्वस्य पुत्रोऽपि कुलक्षणश्चेन्निरधिकारी कर्त्तव्यो यथा वर्षासु नद्यो वर्धन्ते तथैव प्रजा वर्द्धनीयाः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा! आपला पुत्र वाईट लक्षणाचा असेल तर त्यालाही अधिकार देऊ नये. वर्षाऋतूत नद्यांना पूर येतो तशी प्रजेची वृद्धी करावी. ॥ ९ ॥