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त्वं म॒हीम॒वनिं॑ वि॒श्वधे॑नां तु॒र्वीत॑ये व॒य्या॑य॒ क्षर॑न्तीम्। अर॑मयो॒ नम॒सैज॒दर्णः॑ सुतर॒णाँ अ॑कृणोरिन्द्र॒ सिन्धू॑न् ॥६॥

English Transliteration

tvam mahīm avaniṁ viśvadhenāṁ turvītaye vayyāya kṣarantīm | aramayo namasaijad arṇaḥ sutaraṇām̐ akṛṇor indra sindhūn ||

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Pad Path

त्वम्। म॒हीम्। अ॒वनि॑म्। वि॒श्वऽधे॑नाम्। तु॒र्वीत॑ये। व॒य्या॑य। क्षर॑न्तीम्। अर॑मयः। नम॑सा। एज॑त्। अर्णः॑। सु॒ऽत॒र॒णान्। अ॒कृ॒णोः॒। इ॒न्द्र॒। सिन्धू॑न् ॥६॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:19» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजगुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) राजन् ! (त्वम्) आप (तुर्वीतये) शत्रुओं के नाश करनेवाले के और (वय्याय) प्राप्त होने योग्य सुख के लिये (विश्वधेनाम्) सम्पूर्ण वाणी जिसके लिये उस (क्षरन्तीम्) प्राप्त कराती हुई (अवनिम्) रक्षा करनेवाली (महीम्) पृथिवी को प्राप्त होकर हम लोगों को (नमसा) अन्न आदि से (अरमयः) रमाओ और जिनमें (अर्णः) जल (एजत्) कम्पता है, उन (सिन्धून्) नदों को (सुतरणान्) सुखपूर्वक तरना जिनका ऐसे (अकृणोः) करो ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! आप जो राज्य को प्राप्त हो, आप ही आनन्दित हो हम लोगों को नहीं आनन्द देवें तो आपका आनन्द शीघ्र नष्ट हो और आप सब लोगों के सुख के लिये नदी, नद, तड़ाग और समुद्र आदिकों के पार उतरने के लिये नौका आदि बना के धनाढ्य निरन्तर करिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजगुणानाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं तुर्वीतये वय्याय विश्वधेनां क्षरन्तीमवनिम्महीम्प्राप्याऽस्मान्नमसाऽरमयो यत्राऽर्ण एजत् तान् सिन्धून्त्सुतरणानकृणोः ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (महीम्) पृथिवीम् (अवनिम्) रक्षिकाम् (विश्वधेनाम्) समग्रवाचम् (तुर्वीतये) शत्रूणां हिंसकाय (वय्याय) प्राप्तव्याय सुखाय (क्षरन्तीम्) प्रापयन्तीम् (अरमयः) रमय (नमसा) (एजत्) कम्पते (अर्णः) उदकम् (सुतरणान्) सुखं तरणं येषान्तान् (अकृणोः) कुर्याः (इन्द्र) राजन् ! (सिन्धून्) नदान् ॥६॥
Connotation: - हे राजन् ! भवान् यदि राज्यम्प्राप्य स्वयमेवाऽऽनन्द्याऽस्मान्नाऽऽनन्दयेत्तर्हि तवाऽऽनन्दः क्षिपन्नश्येद्भवान् सर्वेषां सुखाय नदीनदतडागसमुद्रादीनान्तरणाय नौकादीन्निर्माय धनाढ्यान् सततं सम्पादयतु ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! तू राज्य प्राप्त करून स्वतः आनंदित होऊन आम्हाला आनंद दिला नाहीस, तर तुझा आनंद लवकर नष्ट होईल. सर्व लोकांच्या सुखासाठी नदी, नद, तलाव व समुद्र इत्यादी पार करण्यासाठी नौका इत्यादी बनवून त्यांना निरंतर धनाढ्य कर. ॥ ६ ॥