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अतृ॑प्णुवन्तं॒ विय॑तमबु॒ध्यमबु॑ध्यमानं सुषुपा॒णमि॑न्द्र। स॒प्त प्रति॑ प्र॒वत॑ आ॒शया॑न॒महिं॒ वज्रे॑ण॒ वि रि॑णा अप॒र्वन् ॥३॥

English Transliteration

atṛpṇuvantaṁ viyatam abudhyam abudhyamānaṁ suṣupāṇam indra | sapta prati pravata āśayānam ahiṁ vajreṇa vi riṇā aparvan ||

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Pad Path

अतृ॑प्णुवन्तम्। विऽय॑तम्। अ॒बु॒ध्यम्। अबु॑ध्यमानम्। सु॒सु॒पा॒नम्। इ॒न्द्र॒। स॒प्त। प्रति॑। प्र॒ऽवतः॑। आ॒ऽशया॑नम्। अहि॑म्। वज्रे॑ण। वि। रि॒णाः॒। अ॒प॒र्वन् ॥३॥

Rigveda » Mandal:4» Sukta:19» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:4» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्ययुक्त ! आप जैसे सूर्य (वज्रेण) वज्र से (आशयानम्) सब ओर से सोते हुए (अहिम्) मेघ का नाश करके (सप्त) सात (प्रवतः) नीच के मार्गों को प्राप्त कराता है, वैसे ही (अपर्वन्) पर्व से रहित समय में (अतृप्णुवन्तम्) भोगों में नहीं तृप्त (सुषुपाणम्) उत्तम पानयुक्त (वियतम्) नहीं जितेन्द्रिय (अबुध्यम्) बुद्धि से रहित (अबुध्यमानम्) उपदेश से भी नहीं जानते हुए अधार्मिक जन की दण्ड से (प्रति, वि, रिणाः) विशेष हिंसा करें ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य किरणों से मेघ को काट के और पृथिवी पर गिरा के नाना प्रकार के मार्गों में बहाता है, वैसे ही विद्या से अविद्या का नाश करके दण्ड से अधार्मिक पुरुषों को कारगृह अर्थात् जेलखाने में छोड़ के बहुत शाखायुक्त नीति का सर्वत्र प्रचार करे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वं यथा सूर्य्यो वज्रेणाऽऽशयानमहिं हत्वा सप्त प्रवतो गमयति तथैवाऽपर्वन्नतृप्णुवन्तं सुषुपाणं वियतमबुध्यमबुध्यमानमधार्मिकञ्जनं दण्डेन प्रति वि रिणाः ॥३॥

Word-Meaning: - (अतृप्णुवन्तम्) भोगेष्वतृप्तम् (वियतम्) अजितेन्द्रियम् (अबुध्यम्) बुद्धिरहितम् (अबुध्यमानम्) उपदेशेनाऽप्यजानन्तम् (सुषुपाणम्) शोभनम्पानं यस्य तम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (सप्त) (प्रति) (प्रवतः) अधोमार्गान् (आशयानम्) (अहिम्) मेघम् (वज्रेण) (वि) (रिणाः) हिंस्याः (अपर्वन्) अपर्वणि पर्वरहिते समये ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यः किरणैर्मेघञ्छिन्नङ्कृत्वा भूमौ निपात्य विविधेषु मार्गेषु वाहयति तथैव विद्ययाऽविद्यां हत्वा दण्डेनाधार्मिकान् कारगृहे निपात्य बहुशाखां राजनीतिं सर्वत्र प्रचालयेत् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य किरणांद्वारे मेघांना छिन्नभिन्न करून पृथ्वीवर वर्षाव करून नाना मार्गांनी प्रवाहित करतो तसेच विद्येने अविद्येचा नाश करून, दंड देऊन अधार्मिक पुरुषांना तुरुंगात घालावे व नीतीचा सर्वत्र प्रचार करावा. ॥ ३ ॥